पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३१
पत्र : डॉ॰ मु॰ अ॰ अन्सारीको


देगी और यह एक बहुत बड़ी दुःखद घटना होगी। यदि उसका समाप्त हो जाना अवश्यम्भावी हो तो इसका फिर किसीको बुरा नहीं मानना चाहिए। लेकिन बात ऐसी है नहीं। अबतक अजमल जामिया-कोषमें जितना धन इकट्ठा हो पाया है, उसका क्या हो, यह कहना कठिन है। यदि कोई ऐसा न्यासपत्र नहीं तैयार किया जा सकता हो जो हम चारों चन्दा इकट्ठा करनेवालों को मंजूर हो तो फिर कोषसे खर्च करनेके लिए धन निकालने की सुविधा देनेका एकमात्र तरीका यही है कि जो संविधान तैयार किया गया है, उसे प्रकाशित कर दिया जाये और दाताओंसे यह बतानेको कहा जाये कि वे अपनी दानकी रकमें उक्त संविधानके अन्तर्गत समितिको सौंप देनेके पक्षमें हैं या नहीं। इसमें तो सन्देह ही नहीं कि यह अत्यन्त असन्तोषजनक हल है और यदि हमें हकीम साहब[१] की स्मृतिके प्रति स्नेह-श्रद्धा हो और यदि हम जामियासे हो सकनेवाले लाभका महत्त्व समझते हों तो ऐसा कदम उठना मुश्किल ही होगा। इसलिए क्या यह सम्भव नहीं है कि पूरे अधिकार काम करनेवाले प्रोफेसरोंको सौंप दिये जायें और फिर वे ही एक ठीक ढंगका न्यायपत्र तैयार करके जितना धन इकट्ठा हुआ है, उसको खर्च करनेकी सुविधा दे दें तथा आगे और भी चन्दा करनेका प्रयत्न करें?

हृदयसे आपका,

डॉ॰ मु॰ अ॰ अन्सारी
१, दरियागंज, दिल्ली


पुनश्च:

अब डॉ॰ जाकिरने मुझे याद दिलाया है कि इस पत्रमें समयकी सीमाके बारेमें तो मैंने कुछ कहा ही नहीं है। लेकिन इस मामलेमें समयका महत्त्व सबसे अधिक है। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि आप जल्दी ही किसी नतीजे पर पहुँचेंगे ताकि या तो जामियाको शानके साथ दफन कर दिया जाये या फिर वह किसी हदतक निश्चित और निरापद स्थितिमें अपना काम फिर शुरू कर दे।

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १४९३०) की माइक्रोफिल्मसे।

 

  1. हकीम अजमलखाँ।