४१. पत्र : वसुमती पण्डितको
आश्रम, साबरमती
७ जुलाई, १९२८
चि॰ वसुमती,
तुम्हारे पत्र मिलते रहते हैं। मैं देखता हूँ कि वहाँ सफाईकी जो हालत है, उसमें सुधार करना कठिन कार्य है। जबतक संस्थाके अध्यक्षकी ऐसे कामोंमें रुचि नहीं होगी तबतक कैसे कोई सुधार किया जा सकता है? इसके बावजूद जो परिवर्तन कराने सम्भव हों उन्हें तुम धीरे-धीरे इस ढंगसे करानेकी कोशिश करना कि किसी प्रकारका मनमुटाव न हो। अपनी मानसिक शान्ति बिलकुल मत खोना बल्कि अटूट धीरज रखना।
यह तो तुम जानती ही होगी कि प्रभावतीने गठियाका दर्द दूर करने के लिए चार दिनका उपवास किया था। उसने कल ही अपना उपवास तोड़ा है। फिलहाल यह नहीं कहा जा सकता कि गठिया चली गई या नहीं।
सम्मिलित भोजनालयके बारेमें काफी चर्चा हो रही है।
बापूके आशीर्वाद
कन्या गुरुकुल
गुजराती (सी॰ डब्ल्यू॰ ४८२) की फोटो-नकलसे।
सौजन्य: वसुमती पण्डित
४२. पत्र: हरिभाऊ उपाध्यायको
आश्रम, साबरमती
७ जुलाई, १९२८
साथका पत्र पढ़ जाना और उसमें कितनी सचाई है, इस बारेमें यदि कुछ जानते हो तो लिखना। यों बात तो बिहारके बारेमें कही गई है, किन्तु वास्तवमें है वह राजपूतानाके बारेमें। अतः शायद तुम इस बारेमें कुछ विशेष जानकारी दे सको।
बापूके आशीर्वाद
गुजरातीकी नकल (सी॰ डब्ल्यू॰ ६०६०) से।
सौजन्य : हरिभाऊ उपाध्याय