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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अपने अनुभव लिख भेजें तो वह उपयोगी होगा। स्वावलम्बन-पद्धतिका प्रचार सभी अपने पड़ोसियों में तो कर सकते हैं, किन्तु 'आप मरे बिना स्वर्ग नहीं मिलता' के न्यायसे जो अपनी खादी आप ही उत्पन्न नहीं कर लेते वे तो इसका प्रचार कर ही नहीं सकते।

[गुजराती से]

नवजीवन, ८-७-१९२८

 

४५. पत्र: शिवदयाल साहनीको

८ जुलाई, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। आप जैसा २७ वर्षीय नौजवान हताश हो बैठे, यह देखकर मुझे बहुत दुःख होता है। आपको हिम्मतसे काम लेना चाहिए। तमाम घरेलू कठिनाइयों पर पार पा लेना चाहिए। आपका अपनी पत्नी और बच्चेको छोड़ना गलत होगा। आत्म-हत्या निश्चय ही पाप है और आपको किसी भी हालतमें ऐसा नहीं करना चाहिए। शान्तिकी खोजमें आश्रम आना बेकार है। शान्ति तो हमें, हम जहाँ रहें, वहीं पा सकना चाहिए। लेकिन जैसा कि मैंने अपने तारमें कहा है, आप लाला लाजपतरायसे सलाह लें और उसके मुताबिक काम करें। इतनी दूरसे आपका मार्गदर्शन कर सकना तो मेरे लिए कठिन ही होगा। उत्तरमें मैं यह सुनने की आशा रखता हूँ कि मनको हर परिस्थितिके अनुकूल ढाल लेनेकी क्षमता आपने पुनः प्राप्त कर ली है और अपनी कमजोरीपर काबू पा लिया है।

आपका भेजा बाकी पैसा बारडोली-कोषके खातेमें डाल दिया गया है।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत शिवदयाल साहनी
मार्फत–पण्डित मुल्कराज
ओवरसीअर, कैम्बेलपुर, पंजाब

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३४६७) की माइक्रोफिल्मसे।