पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/७७

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५३. पत्र : टी॰ प्रकाशम्को[१]

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
११ जुलाई, १९२८

प्रिय प्रकाशम्,

क्या मुझे अपने पिछले पत्रका[२] जवाब नहीं मिलेगा?

हृदयसे आपका,

श्रीयुत टी॰ प्रकाशम्
'स्वराज्य', मद्रास

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३६३४) की माइक्रोफिल्मसे ।

 

५४. पत्र: शंकरन्‌को

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
११ जुलाई, १९२८

प्रिय शंकरन्,

आपका पत्र और छगनलाल जोशीको भेजा चेक मिला। नाम यथासमय प्रकाशित किये जायेंगे।

दाताने जिस उद्देश्यके लिए दान दिया हो, यदि उक्त राशिको उससे भिन्न उद्देश्य के लिए खर्च करनेकी अनुमति उससे ले ली जाये तो अस्तेयके नियमका उल्लंघन नहीं होता।

मजदूरको अपनी मजदूरी पानेका अधिकार है, इस सिद्धान्तके अनुसार देखें तो उस कार्यकर्त्ताके बारेमें जो भोजन, वस्त्र और आवासके लिए आवश्यक न्यूनतम व्यवस्था से सन्तुष्ट है और साथ ही अपनी ओरसे कोई ऐसी शर्त नहीं लगाता कि मुझे अपनी सेवाके एवजमें भोजन-वस्त्र आदि मिलने ही चाहिए, यही माना जायेगा कि उसने अपनी सारी आवश्यकताएँ समाप्त कर दी हैं। उस अवस्थामें जो संस्था उससे काम लेगी वह उसे स्वयं अपनी ही खातिर रोटी और कपड़ा देगी। जिसने पूर्णत: आत्मोत्सर्ग कर दिया है, उसके भाग्यमें यदि भूख और अभाव ही बदा हो तो वह उसे खुशी-खुशी झेल लेगा। आखिरकार आत्मोत्सर्ग तो मनकी एक अवस्था

 

  1. इसकी एक नकल अ॰भा॰ च॰ सं॰ के मन्त्री पत्रके सन्दर्भ में अहमदाबादके पते पर उन्हें भी भेजी गई थी।
  2. देखिए खण्ड ३६, "पत्र: टी॰ प्रकाशम्को", २४-५-१९२८।