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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। जो करोड़ों लोग असहायावस्थामें भूख से तड़प रहे हैं, उन्होंने कुछ भी उत्सर्ग नहीं किया है, क्योंकि उनके मनको वह लाचारीकी भुखमरी स्वीकार्य नहीं है।

आपका नया पता जाने बिना आपको यह पत्र भेज रहा हूँ। आशा है, मिल जायेगा।

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३४६९) की फोटो-नकलसे।

 

५५. पत्र: एस॰ ए॰ सहस्रबुद्धेको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
११ जुलाई, १९२८

प्रिय मित्र,

आपके पत्र मिले। जो पत्र मुझे मिलते हैं, उन सबकी प्राप्ति मैं सूचित कर ही देता होऊँ, ऐसी कोई बात नहीं है। इसका और कोई कारण न हो तो भी इतना तो समझ ही लीजिए कि मेरे पास समय नहीं रहता। जिन मृत अथवा जीवित व्यक्तियोंका में प्रशंसक हूँ, उनके सम्मानमें आयोजित तमाम समारोहोके बारेमें मैं 'यंग इंडिया' में लिखता होऊ, ऐसा भी नहीं है।

शिवाजी तथा अन्य वीर पुरुषोंके बारेमें मैं पहले जो विचार व्यक्त कर चुका हूँ, उनमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। लेकिन सिर्फ इस कारणसे कि वे मेरे गुरु अथवा आदर्श नहीं हैं; मैं उनकी शूरता और विश्वके रंगमंच पर उन्होंने जो महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाई हैं, उनकी ओरसे भी अपनी आँखें बन्द नहीं रखता।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत एस॰ ए॰ सहस्रबुद्धे
पारेख बिल्डिंग,
गिरगाँव, बम्बई

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३४७०) की फोटो-नकलसे ।