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५७. टिप्पणियाँ
सेवाके लिए शिक्षा

एक भाईने एम॰ ई॰ डी॰ स्मिथकी लिखी 'द सर्विस ऑफ मदरहुड' नामक पुस्तकसे निम्नलिखित रोचक उद्धरण भेजा है:

हमारी शिक्षा पद्धति बहुत अव्यवस्थित रही है। उदाहरणके लिए, हमारे विश्वविद्यालयों में यह प्रवृत्ति बहुत व्यापक रूपसे प्रचलित रही है कि विद्यार्थी यदि कुछ सीखना चाहें तो सीखें, लेकिन यदि उन्हें अध्ययनसे अरुचि हो तो उन्हें लगभग अपनी मर्जीके मुताबिक अपना समय बरबाद करने दिया जाये। किसी भी राष्ट्रका व्यक्ति वहाँ उसकी सेवा करने के लिए पैदा हुआ है; उसका जन्म इसलिए नहीं हुआ है कि वह मुसाफिरकी तरह आये और मौज करके चला जाये। इस प्रकार इस प्रवृत्तिसे निश्चय ही बहुत हानि हो रही है, किन्तु आश्चर्य की बात है कि लोग इतनी बड़ी हानिके कारणकी ओरसे उदासीन बन रहे हैं। शिक्षा पद्धतिकी इस ढिलाईका बहुत बड़ा दोष हमारी शिक्षा-व्यवस्था के बड़े-बड़े अधिकारियोंके सिर है। वे समयके तकाजेकी ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं और अलगाव तथा आत्मतोषके वातावरणमें पड़े-पड़े ऊँघ रहे हैं। वे शिक्षाके सच्चे उद्देश्य और परम महत्त्वको समझने में असमर्थ रहे हैं। हमें आशा करनी चाहिए कि भविष्यमें कुछ सीखनेके अवसरोंका लाभ उठानेमें चूक करना उतना ही लज्जाजनक माना जायेगा, जितना लज्जाजनक किसी सिपाहीके लिए अपने कर्त्तव्य-स्थलसे भाग खड़ा होना है।

लेकिन स्मरण रहे कि यह बात राष्ट्रीय सैनिक सेवा के लिए दी जानेवाली सैनिक शिक्षाके सन्दर्भमें कही गई है। जिस सेनाको अपने भाई-बन्धुओंकी इच्छाओं और भावनाओंको कुचलनेके लिए प्रशिक्षण और पैसा दिया जाता हो, भाड़ेके टट्टुओंकी ऐसी सेनामें काम करना उतना ही गलत है जितना गलत उस शैक्षणिक संस्थासे सम्बद्ध रहना जिसका गठन किसी विदेशी शासनके उद्देश्योंको पूरा करने में सहायता देनेके लिए किया गया हो।

काशी विद्यापीठ

काशी विद्यापीठके प्राचार्य नरेन्द्रदेवने मुझे निम्न सूचनाएँ[१] प्रकाशनार्थं भेजी हैं:

यह विद्यापीठ उन थोड़ी-सी राष्ट्रीय शालाओंमें से है जिनका अस्तित्व अब भी बना हुआ है। इसका श्रेय बाबू शिवप्रसाद गुप्तकी आस्था और उदारताको है।

 

  1. इनका अनुवाद यहाँ नहीं दिया जा रहा है। सूचनाएँ विद्यालयके खुलनेकी तिथि, पढ़ाये जानेवाले विषय, दाखिले के लिए न्यूनतम योग्यता आदिके बारेमें थीं।