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क्या हम और भी गरीब होते जा रहे हैं?

कुछ दिन पहले प्रोफेसर सेम हिगिनवॉटमने मुझे भारतकी गरीबीके सम्बन्धमें कुछ प्रश्न भेजे थे और मुझसे उनके उत्तर देनेको कहा था।[१] चूंकि उनकी जिज्ञासा गम्भीर थी और मैं जानता हूँ कि वे इस कठिन समस्या समाधान में हमारी सहायता करना चाहते हैं, इसलिए मैंने सोचा कि सिर्फ अपनी ही समझके अनुसार उत्तर देनेके बजाय मुझे इस विषयके विशेषज्ञोंसे सहायता लेनी चाहिए। इसलिए ऐसे कुछ मित्रोंसे पत्र लिखकर मैंने पूछा कि क्या वे अपने-अपने सुविचारित मत देनेके लिए समय निकाल सकेंगे। बम्बई विश्वविद्यालयके प्रोफेसर सी॰ एन॰ वकीलने एक लेखमालामें[२] अपना मत भेजनेकी कृपा की है। इसकी पहली किस्त पाठक इसी अंकमें अन्यत्र देख सकते हैं।

अखिल भारतीय गो-रक्षा संघ[३]

इसी महीनेकी २५ तारीखको ३-३० पर सत्याग्रहाश्रम, साबरमतीमें इस संघकी आम सभाकी एक बैठक होगी, जिसमें निम्नलिखित प्रस्ताव पर विचार किया जायेगा:[४]

"चूंकि अखिल भारतीय गो-रक्षा संघने अपने लिए जिस अखिल भारतीय स्वरूपका दावा किया है, वह तदनुरूप जनताका ध्यान और सहानुभूति अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाया है और चूँकि इसकी प्रवृत्ति संघके उद्देश्योंको धीरे-धीरे प्रचारित करने और विशेषकर संघके उद्देश्योंके अनुसार सत्याग्रहाश्रममें एक दुग्धशाला और चर्मंशोधनालयके संचालन तक ही सीमित रही है और चूँकि चन्दा और दान केवल उन्हीं लोगोंने दिया है जिनकी इस प्रयोगमें रुचि है, और चूँकि जिन अनेकानेक गोशालाओं और पिंजरापोलोंसे संघके उद्देश्यके प्रति उत्साह दिखाने और संघसे संयुक्त होने की अपेक्षा की गई थी वे वैसा करने में असफल रहे हैं, इसलिए संघके वर्तमान सदस्य यह निर्णय करते हैं कि इस संघको भंग करके अपेक्षाकृत कम व्यापकता और विस्तारका बोध करानेवाला नाम – गो-रक्षा और गो-परिरक्षण समिति – अपनाया जाये और संघके कोष और उसके भण्डारमें जो-कुछ माल हो उसका दायित्व, व्यवस्था और नियन्त्रण समितिकी निम्नलिखित प्रबन्ध समितिको सौंप दिया जाये तथा उसे कोषका धन खर्च करने, उक्त प्रयोगोंके संचालन तथा नये प्रयोग कराने और अन्य प्रकारसे संघके उद्देश्योंको कार्यान्वित करने और समितिकी व्यवस्थाके लिए संविधान और नियम बनाने तथा उनमें समय-समय पर आवश्यक संशोधन करनेका पूरा अधिकार दिया जाये।"

 

  1. देखिए "हमारी गरीबी", ६-९-१९२८।
  2. इस लेख-मालाका शीर्षक था "पावर्टी प्रॉब्लेम ऑफ इंडिया" ( भारतकी गरीबीकी समस्था) और यह यंग इंडियाके १२, १९ और २६ जुलाई तथा २ और ९ अगस्त, १९२८ के अंकोंमें प्रकाशित हुई थी।
  3. २८ अप्रैल, १९२५ को गांधीजी द्वारा संस्थापित, देखिए खण्ड २६।
  4. यह प्रस्ताव जिस संशोधित रूपमें स्वीकृत किया गया उसके लिए देखिए "रक्षा नहीं, सेवा", २-८-१९२८।