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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


इस प्रस्तावको लानेका कारण बतानेके लिए और कुछ लिखना अनावश्यक है। श्रीयुत जमनालालजी को तथा मुझे बहुत दिनोंसे ऐसा लगता रहा था कि संघको इतनी व्यापकता और विस्तृत उद्देश्योंका बोध करानेवाले नामसे चलाकर हम संघ और जनताके साथ न्याय नहीं कर रहे हैं, क्योंकि हम उस नामको सार्थक करनेके लिए न कोई उतना व्यापक और विस्तृत काम कर रहे हैं और न वैसे बड़े परिणाम ही दिखा पाये हैं। कोषमें पैसा भी मुख्यतः उतना ही आ पाया है जितना श्रीयुत जमनालालजी को उनके मित्रोंने दिया और जितना-कुछ मैं उन प्रयोगोंके निमित्त प्राप्त कर पाया हूँ, जिन्हें मैं गायोंको विनाशसे बचाने के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मानता हूँ। इसलिए यह उचित और ज्यादा ईमानदारीकी बात लगती है कि संघको ऐसे लोगोंकी एक छोटी समितिका रूप दे दिया जाये जो गो-परिरक्षणमें रुचि रखते हैं और उसके लिए इन पृष्ठोंमें सुझाये गये तरीकोंको पसन्द करते हैं। कोषमें फिलहाल लगभग १७,००० रुपये हैं और संघके पास सामानके नाम पर कुछ पुस्तकें हैं, जिनमें से अधिकांश मुझे उपहारमें प्राप्त हुई हैं। इन दिनों मासिक खर्च ५५ रुपये बैठता है। संघकी देनदारीमें, उसको सौंपे गये प्रयोगोंके संचालन पर उसे जितना खर्च करना पड़ सकता है, वही खर्च आता है।

[अंग्रेजी से]

यंग इंडिया, १२-७-१९२८

 

५८. विद्यार्थियोंमें जागृति

बारडोलीका सन्देश अभी पूरा नहीं हो पाया है। अभी वह अपूर्ण है; फिर भी उसने हमें जो सबक सिखाये हैं उन्हें हम आसानी से नहीं भूल सकते। इसने मन्द पड़े हुए उत्साहको फिरसे जगा दिया है; यह हमारे लिए नई आशाका सन्देश लेकर आया है, इसने सामूहिक अहिंसाकी असीम सम्भावनाओंके प्रति हमारी आँखें खोल दी हैं और यह अहिंसा अभी तो वह है जिसका पालन हम उसमें अपने सम्पूर्ण विश्वासके कारण नहीं, अन्यान्य सद्गुणोंकी तरह महज नीतिके रूपमें ही कर रहे हैं। बम्बईमें श्रीयुत वल्लभभाई पटेलके सम्मानमें जैसा प्रदर्शन किया गया, लोगोंने बिना कुछ कहे अपनी इच्छासे जिस प्रकार उन्हें २५,००० रुपयेका दान दिया, जिस तरह प्रेमसे उनकी गाड़ीको घेर लिया, जब वे भारी भीड़से होकर गुजर रहे थे तब जिस प्रकार सोने और नोटोंकी उन पर वर्षा हुई, उनके सभा-भवनमें प्रवेश करते ही श्रोतृ-समुदायने जिस प्रकार उनका स्वागत किया, उस सबका जो वर्णन मैंने प्रत्यक्षदर्शियोंसे सुना है, वह इस बातका प्रमाण है कि चन्द महीनों में अपने साहस और कष्ट सहनसे बारडोलीने क्या-कुछ कर दिखाया है। वैसे तो सभी क्षेत्रोंमें बहुत जबरदस्त जागृति आई है, किन्तु विद्यार्थियोंके बीच अधिक जागृति आई है और बम्बईके विद्यार्थियों के बीच तो सबसे अधिक। मैं श्रीयुत नरीमनको और जिन बहादुर युवकों और युवतियों पर उनका ऐसा आश्चर्यजनक प्रभाव है उनको भी बधाइयाँ देता हूँ। और प्रत्यक्षदर्शियोंने विद्यार्थी समाज में से भी तीन पारसी युवतियों,