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६२. पत्र : एडा रॉसेनग्रीनको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१३ जुलाई, १९२८

प्रिय मित्र,

आपके पत्र और इस जर्मन पुस्तकके[१] लिए धन्यवाद। मेरा खयाल है, मैं आपको बता चुका हूँ कि मैं जर्मन नहीं जानता।

अगले साल मेरी यूरोप यात्राके बारे में अभी कुछ भी तय नहीं हो पाया है।

तलाकके बारे में मेरे विचार बहुत तीव्र हैं। मेरा अपना मत तो यह है कि यदि पति और पत्नी के स्वभावका मेल एक-दूसरेसे नहीं बैठता और दोनोंके बीच बराबर तनाव रहता है तो उन्हें स्वेच्छा से एक-दूसरे से अलग होकर रहना चाहिए। लेकिन मैं किसी भी पक्ष द्वारा पुनर्विवाहके औचित्यको स्वीकार नहीं करता। ब्रह्मचर्यकी आवश्यकता में विश्वास रखनेवाले व्यक्ति की हैसियतसे मैं स्वभावतः यह मानता हूँ कि पुरुष अथवा स्त्री जितने अधिक संयमसे काम ले, उसके लिए उतना ही अच्छा है।

हृदयसे आपका,

एम॰ एडा रॉसेनग्रीन
लिडिंगो, स्वीडन

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १४३४६) की फोटो-नकलसे ।

 

६३. पत्र: एच॰ एन॰ मॉरिसको

एम॰ एडा रॉसेनग्रीन
लिडिंगो, स्वीडन
प्रिय मित्र,

आपके पत्र और हेलेन केलरकी पुस्तक 'माई रिलीजन' की प्रतिके लिए धन्यवाद।

मैं हेलेन केलरके नाम और उनके कार्यसे अवगत हूँ। लेकिन दुःखके साथ आपको सूचित करना पड़ता है कि बहुत चाहते हुए भी मुझे पढ़नेके लिए बिलकुल समय नहीं मिलता। इसलिए आपने जो पुस्तक मुझे भेजी है, वह अब भी यों ही पड़ी हुई है। हाँ, आश्रमके लोग उसे बड़ी रुचिसे पढ़ेंगे।

 

  1. तटस्थ समिति द्वारा तैयार की गई पुस्तक; जिसने प्रथम विश्व युद्धके कारणोंकी जाँच की थी।