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६७. पत्र : आबिदअली जाफरभाईको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१३ जुलाई, १९२८

प्रिय मित्र,

आपके 'वार्षिक' के लिए सन्देश:

जो लोग भारतसे बाहर सिंगापुर आदि स्थानोंमें रहते हैं उन्हें यह याद रखना चाहिए कि जिस राष्ट्रके वे सदस्य हैं, उसका सम्मान उनके हाथोंमें है और इसलिए वे जिन विदेशियों के बीच रह रहे हों उनके प्रति उनका आचार-व्यवहार बिलकुल निर्दोष और खरा होना चाहिए। उन्हें खादी पहनकर अपनी मातृभूमिके गरीबोंके साथ अपना तादात्म्य भी बनाये रखना चाहिए।

हृदयसे आपका,

आबिद अली जाफरभाई
यूसुफ बिल्डिंग सी.
माउंट रोड, मजगाँव, बम्बई-१०

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १४५६८) की फोटो-नकलसे।

 

६८. पत्र : यू॰ के॰ ओझाको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१३ जुलाई, १९२८

प्रिय ओझा,[१]

आपका पत्र[२] मिला। आपने तो मुझपर ऐसा बोझ डाल दिया है, जिसे ढो सकना मेरे लिए कठिन है। आपका सुझाव बहुत अच्छा लगता है, लेकिन समस्या

 

  1. नैरोवीसे प्रकाशित डेमोक्रेटके सम्पादक; पूर्व आफ्रिकी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके अध्यक्ष।
  2. अपने २७ जून, १९२८ के इस पत्रमें ओझाने पूर्व आफ्रिकाके भारतीयों और यूरोपीयोंके बीच सम्मिलित निर्वाचक सूचीके प्रश्नपर समझौतेकी शर्तें सुझाई थीं। उन्होंने लिखा था: "यूरोपीय समाज दोनों समाजोंकी सम्मिलित निर्वाचक-सूचीपर सहमत है। मताधिकार अधिवास, उम्र और शैक्षणिक अथवा साम्पत्तिक योग्यतापर आधारित होना चाहिए। शैक्षणिक योग्यता यह होनी चाहिए कि सम्बन्धित व्यक्ति अंग्रेजी पढ़ और लिख सके। साम्पत्तिक योग्यताके विषयमें भारतीयोंकी ओरसे यह मत व्यक्त किया गया है कि सम्बन्धित व्यक्ति कमसे-कम १,००० पौंडकी अचल सम्पत्तिका स्वामी हो। मैं इससे सहमत नहीं हूँ और मेरा विचार है कि यह सीमा और कम होनी चाहिए। ...उपर्युक्त प्रस्तावोंके विषयमें यह तय हुआ कि पहले इन्हें कांग्रेसके सामने रखा जाये और यदि उसको स्वीकृति मिल जाये तो प्रमुख भारतीय और यूरोपीय उनपर अपने हस्ताक्षर करके उन्हें कीनियावासी भारतीयोंके सवालके निपटारेका एक उचित रास्ता सुझानेवाले संयुक्त घोषणापत्रके रूपमें प्रकाशित कर दें।" (एस॰ एन॰ १२८५५)