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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


पर पूरी तरह सोचे-विचारे बिना आपका मार्गदर्शन कर सकने में असमर्थ हूँ। इसलिए मैं तो यही कह सकता हूँ कि जो लोग वहाँ हैं, वही इस सम्बन्धमें निर्णय लेनेके लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं। हाँ, मैं एक सावधानी बरतनेकी सलाह अवश्य दूंगा। वह यह कि यद्यपि वहाँ मौजूद लोग ही इस सम्बन्धमें निर्णय लेनेके लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं, फिर भी उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे ऐसा कुछ नहीं करेंगे जो सम्पूर्ण राष्ट्रकी गरिमा या सम्मानके प्रतिकूल हो।

आपके पत्रके अन्तिम अनुच्छेदके[१] बारेमें मैं यह कहूँगा कि अनुभवने अहिंसामें मेरा विश्वास दृढ़ बना दिया है। हमारे चारों ओर जो-कुछ हो रहा है, उससे मुझे हिंसाकी नहीं, बल्कि अहिंसाकी ही शिक्षा मिलती है। हो सकता है कि मैं बिलकुल गलत होऊँ, लेकिन मुझे इस गलतीका न कोई बोध है और न उसकी अनुभूति ही हो रही है।

आपको प्रतीक्षा करनेकी सलाह देते हुए एक तार भेजा है।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १२८५५-ए) की माइक्रोफिल्मसे।

 

६९. पत्र : एस॰ जी॰ वझेको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१४ जुलाई, १९२८

प्रिय वझे,

साथ में ओझासे प्राप्त पत्रकी एक नकल और अपना जवाब भेज रहा हूँ। मुझे इस मामले में मार्ग-निर्देशन करना निरापद नहीं लगता और मैंने ओझाको ऐसा ही लिख दिया है। लेकिन आपने तो वहाँ रहकर परिस्थितिका अध्ययन किया है। क्या आप उनका मार्ग-दर्शन कर सकेंगे?

मैं बनारसीदासको[२] भी लिख रहा हूँ। ओझाको तार देकर प्रतीक्षा करनेको कहा है।

बारडोली पर तैयार की गई आपकी रिपोर्ट[३] बहुत अच्छी लगी।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत एस॰ जी॰ वझे
सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी, पूना

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १२८६१) की माइक्रोफिल्मसे।

 

  1. इस अनुच्छेदमें पत्र लेखकने कहा था कि "मुझे लगता है कि शीघ्र ही आपको एक जबरदस्त युवक-आन्दोलनका नेतृत्व करना पड़ेगा और खुद में तो सोचता हूँ कि तब आपको अहिंसाको भी एक किनारे रख देना पड़ेगा। चारों ओर जो काले बादल जमते चले जा रहे हैं, उन्हें क्या आप नहीं देख रहे है?"
  2. वनारसीदास चतुर्वेदी।
  3. यह रिपोर्ट हृदयनाथ कुँजरू, सर्वेंट ऑफ इंडिया के सम्पादक वझे और अमृतलाल ठक्करने तैयार की थी। तोनों सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटीके सदस्य थे। महादेव देसाई द्वारा तैयार किये गये रिपोर्ट के सार-संक्षेपके लिए देखिए परिशिष्ट १।