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७२. टिप्पणियाँ
विकार-बिच्छू

कलकत्तेका एक विद्यार्थी लिखता है:[१] मेरा और मेरे साथियोंका अनुभव तो ऐसा है कि अगर पति-पत्नी स्वेच्छा से ब्रह्मचर्यका पालन करें तो आत्यन्तिक सुख पा सकते हैं, अपने सुखकी वृद्धिका नित्य अनुभव कर सकते हैं। अशिक्षित पत्नीको ब्रह्मचर्यकी महिमा समझानेमें अड़चन नहीं पड़ती। अथवा यों कह सकते हैं कि ब्रह्मचर्य शिक्षित-अशिक्षितका भेद नहीं जानता। ब्रह्मचर्यके लिए केवल हृदयकी शक्ति चाहिए। मैं ऐसी अशिक्षित स्त्रियोंको जानता हूँ जो विवाहित हैं और ब्रह्मचर्यका पालन कर रही हैं। ब्रह्मचर्यका पालन करनेवाला पति समाजके गंदे वातावरणमें भी अपनी पत्नीके शीलकी रक्षा करनेमें अधिक समर्थ होता है। ब्रह्मचर्यका अभाव पत्नीको भ्रष्ट होने से नहीं बचाता है, बल्कि वह पत्नीके भ्रष्टाचारका आवरण बन सकता है, इसके तो कितने ही उदाहरण दिये जा सकते हैं।

ब्रह्मचर्यकी शक्ति अपरिमित है। बहुत से मामलोंमें मेरा अनुभव है कि ब्रह्मचर्यका पालन करनेवाला पति स्वयं विकारोंसे मुक्त न होने के कारण अपने प्रयत्नोंका प्रभाव अपनी पत्नी पर नहीं डाल पाता। विकार महाशय बड़े चतुर हैं। इसलिए उन्हें अपने बन्धुको पहचानते देर नहीं लगती। जो विकार-रहित नहीं बनी है, जो विकारको छोड़नेको अभी तैयार भी नहीं हुई है, वह पत्नी अपने पतिके हृदय में छिपी हुई विकार-वासनाको तुरन्त पहचान लेती है, और उसके दुर्बल प्रयत्नोंकी मन-ही-मन हँसी उड़ाती है, और स्वयं निश्चिन्त रहती है। इसमें किसीको सन्देह नहीं होना चाहिए कि जो ब्रह्मचर्य अविचलित है, और जिसमें शुद्ध प्रेम भरा हुआ है, वह अपने साथियोंके विकारको जलाकर राख कर देता है। बेलूरमें कई सुन्दर मूर्तियोंमें एक मूर्ति मैंने ऐसी देखी जिसमें शिल्पकारने कामको बिच्छूका रूप दिया है। उसने एक कामिनीको डंक मारा है। उसके जहरके तापने उस स्त्रीको नग्न कर डाला है। और उसके बाद वह बिच्छू अपने डंकको टेढ़ा किये हुए, अपनी विजयके अभिमानमें उस स्त्रीके पैरोंके पास पड़ा-पड़ा उसकी हँसी कर रहा है। इस बिच्छूपर जिस पतिने विजय प्राप्त कर ली उसकी आँखों, उसके स्पर्श, उसकी वाणीमें ब्रह्मचर्यको शीतलता होती है। वह अपने समीप रहनेवाले विकारोंको क्षण-भरमें ठंडा करके शान्त कर देता है।

 

  1. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। लेखकने पूछा था कि क्या अशिक्षित पत्नीको ब्रह्मचर्यकी महिमा समझाकर पति-पत्नी ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए सुखी जीवन बिता सकते हैं?