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वृद्ध-बाल-विवाह या व्यभिचार?

एक बहनके पत्रके कुछ अंश यहाँ दे रहा हूँ:[१]

इस बहनकी दलीलमें सार है। किन्तु औषध तो वही है जो मैंने बतलाई है।[२] जो पुरुष व्यभिचार करता है, समाज उसका बहिष्कार भले करे किन्तु जबतक व्यभिचारीका बहिष्कार न करे तबतक उस वृद्धका भी बहिष्कार न किया जाये जो बालिकासे विवाह करता है। यदि इस दलीलको मान लें तो ऐसे बेमेल विवाहोंको रोकने में बहुत दिन लग जायेंगे। इसमें शक नहीं कि व्यभिचारमें बहुत-से दोष हैं, मगर मैं मानता हूँ कि वृद्ध-बाल-विवाहमें उससे भी अधिक दोष हैं। व्यभिचारमें दोनों पक्ष सहमत होते हैं और दोनोंमें से जो कोई जब पापसे छूटना चाहे, छूट सकता है। वृद्ध-बाल-विवाहमें तो सुधार या प्रायश्चित्तका अवकाश ही नहीं है, क्योंकि उस अधर्मको रोकनेमें धर्म स्वयं ही बाधक है। इस तथाकथित विवाह-सम्बन्धमें धर्म ढालरूप बन जाता है। फिर अधर्म जब धर्मका वेश धारण करता है, तब वह और अधिक दूषित बनता है क्योंकि उसमें पाखण्डका मिश्रण होता है।

दुःखकी बात तो यह है कि आज समाज जिस तरह व्यभिचारके बारेमें उदासीन है, उसी तरह वृद्ध-बाल-विवाहके बारेमें भी है। इसलिए दोनों सवालोंको एक साथ न जोड़ते हुए यह बहन, तथा दूसरी बहनें और नवयुवक, वृद्ध-बाल-विवाहके प्रश्नको अपने हाथमें लें और उसके विरुद्ध लोकमत तैयार करें। इतना सही है कि जो लोग ये आवश्यक सुधार करना चाहते हैं, उन्हें स्वयं शुद्ध होना चाहिए। कानूनका नियम है कि जो न्याय माँगने जाते हैं, उन्हें स्वयं शुद्ध होकर न्याय-मन्दिरमें प्रवेश करना चाहिए। अनुभव इस नियमका पूरा समर्थन करता है।

आप भला तो जग भला

जब कि मैं दूसरोंकी निन्दा सुन-सुनकर दुःखी हो रहा था, एक मित्रने अचानक नीचेकी कड़ियाँ मुझे सुनाई। मुझे वे बहुत ही पसन्द आई और इसलिए इस निर्दोष विनोदमें पाठकको भी हिस्सेदार बनानेका मन हुआ:

न थी हालकी जब हमें अपने खबर,
रहे देखते औरोंके ऐब औ' हुनर।
पड़ी अपनी बुराइयों पै जब के नजर,
तो निगाहोंमें कोई बुरा न रहा।
जफर' आदमी उसको न मानियेगा,
गो हो कैसा ही साहबेफहम ओ जका।
जिसे ऐशमें यादे खुदा न रही,
जिसे तैशमें खौफे खुदा न रहा।

 

  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। लेखिकाने पूछा था कि बालिकाओंसे विवाह करनेवाले वृद्ध व्यक्तियका वहिष्कार कैसे किया जा सकता है जब कि समाजके अधिकांश लोग ऐसे विवाहको शास्त्र सम्मत मानते हैं। फिर जो व्यक्ति रखेल रखते हैं उनका भी तो कोई बहिष्कार नहीं करता।
  2. देखिए "टिप्पणियाँ" ८-७-१९२८ का उपशीर्षक 'वृद्ध बाल-विवाह'।