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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

किन्तु ये पंक्तियाँ देनेकी धृष्टता मैंने की है, इसलिए मुझे आशा है कि 'कविगण' मुझपर कविताओंकी वर्षा नहीं करेंगे। सुन्दर काव्यसे हम आत्मशुद्धि नहीं कर सकते, यह मैं जानता हूँ। इसलिए शायद ही कभी कविताको 'नवजीवन' में स्थान मिलता है। किन्तु ऊपरकी कविताके उपयोगका इतिहास है, इसलिए उसे पाठकोंके आगे, इस आशासे रखा है कि कोई तो अपने दोषोंका दर्शन करनेके बाद परनिन्दासे बचेगा।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १५-७-१९२८

 

७३. स्नातकके प्रश्न
रेशम और व्याघ्रचर्म

विद्यापीठके एक स्नातक लिखते हैं:[१]

इस विषय में मुझे कोई शंका नहीं है कि अहिंसाकी दृष्टिसे रेशम और व्याघ्र-चर्मका त्याग किया जाना चाहिए। और इसी दृष्टिसे मोती तथा दूसरी बहुत-सी वस्तुओंका भी त्याग आवश्यक है। जान पड़ता है कि जिस युगमें रेशम और बाघम्बर पहननेका रिवाज चला, उस युगमें लोग अहिंसा-धर्मको मानते थे किन्तु फिर भी ऐसी वस्तुएँ काममें लाते थे। उस समय उन्होंने बाघके चमड़े और रेशमको उपयोगी और आवश्यक माना इसलिए अहिंसा-धर्मके माननेवाले होनेपर भी, उन्होंने दोनों वस्तुएँ इस्तेमाल की। अहिंसाको मानते हुए भी हमारे पूर्वज यज्ञमें पशुओंकी बलि देते थे और आज भी हम कितनोंको ऐसा करते देखते हैं। पशुओंकी बलि देनेवाले शास्त्रके वचनोंका हवाला देते हुए कहते हैं कि यज्ञार्थ की गई हिंसा, हिंसा कदापि नहीं है। इसी तरह हममें से जो केवल वनस्पति आ निरामिष आहार ही करते हैं, वनस्पति इत्यादिमें जीवन होनेपर भी उनका नाश करते हैं और मानते हैं कि इससे हमारी अहिंसाको जरा भी बाधा नहीं पहुँचती।

इन सबसे यह निष्कर्ष निकलता है कि देहधारी पूरी तरह हिंसासे मुक्त नहीं रह सकता। सिर्फ पानी और हवा पर रहनेवाला भी थोड़ी-बहुत हिंसा तो करता ही है। इससे हम ऐसा नियम बना सकते हैं कि जिसके उपयोग में जरा भी हिंसा है, उसका यथासम्भव त्याग करना चाहिए। स्वयं ऐसा त्याग करते हुए भी हम दूसरोंकी निन्दा न करें, और उनके प्रति उदार भाव रखें।

यद्यपि ऊपरके हिसाबसे खाने-पीने में अत्यन्त सादगीकी जरूरत है, और मनुष्य से निचले दर्जेके जीवोंको बचाना हमारा धर्म है, फिर भी हमें समझ लेना चाहिए कि इस तरह जिस अहिंसाका पालन होता है वह अल्प ही है, सम्पूर्ण नहीं। हम रोज देखते हैं कि ऐसी अहिंसाका अतिशय सूक्ष्मतासे पालन करनेवाला आदमी जबरदस्त

 

  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। लेखकने पूछा था कि क्या रेशम और व्याघ्र-चर्मके उपयोगसे अहिंसाका उल्लंघन नहीं होता।