पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


कीमती है। जगत् में एक भी आदमी बेकार बैठा रहे तो उसका बोझा किसी-न-किसीको तो उठाना ही पड़ता है। इसलिए एक क्षण भी बेकार बैठे रहना पाप है। हम अगर यह बात समझ लें तो बहुत-सी कठिनाइयोंसे बच जायेंगे। और जिस तरह बेकार बैठे रहना पाप है, उसी तरह अपनी जरूरतसे अधिक लेना या संग्रह करना भी पाप है। जहाँ-जहाँ भुखमरी वर्तमान है, उसका भी कारण यही है।

खादीका आशय

स्नातकका तीसरा प्रश्न यह है:[१]

खादीका यह एक आशय है सही, मगर दूसरे भी कई आशय हैं। जैसे उससे किसानवर्गको अपने अवकाशमें घरेलू और व्यापक धन्धा मिलेगा। उससे विदेशी कपड़ेका बहिष्कार होगा, प्रजाकी संघ-शक्ति बढ़ेगी, मध्यमवर्गके हजारों लोगोंको प्रामाणिक आजीविका मिलेगी, और यदि करोड़ों आदमी खादीका मन्त्र समझ जायें तो उसमें स्वराज्य-प्राप्तिकी शक्ति तो सहज ही पड़ी हुई है।

खादीकी सफलतासे कारखानोंका साम्राज्य तो जरूर ही समाप्त होगा।

स्नातकसे दो बातें

स्नातकने और भी कई प्रश्न पूछे हैं, मगर उनके उत्तर देनेकी आवश्यकता मुझे नहीं जान पड़ती। वे प्रश्न पूर्वजन्म और पुनर्जन्म तथा दैवके विषयमें है। ये प्रश्न अनादिकालसे चले आ रहे। स्नातकको मेरी सलाह है कि ऐसे प्रश्नों के उत्तरके लिए वे धीरज रखें। मैं जो कुछ उत्तर दूंगा, उनके जवाबमें दस बातें और लिखी जा सकती हैं और यों बुद्धिबलकी आजमाइश चला ही करेगी। हमारे लिए सीधा मार्ग यह है कि हम सब अपने आगे उपस्थित कर्त्तव्य में लगे रहें, और अपनी आध्यात्मिक उलझनोंके लिए यह आशा रखें कि परमात्मा उन्हें सुलझायेगा। पाप और पुण्यकी प्रतीति हमें होती है और प्राचीन कालसे यह धर्म चला आया है कि पुण्य करें और पाप छोड़ दें। इतनेसे हमें सन्तुष्ट रहना चाहिए। दैव और पुरुषार्थका द्वन्द्व चला ही करता है। अच्छा काम करने में हम पुरुषार्थकी ओर ही झुकें। 'गीता' ने सुगम मार्ग बता दिया है, वह है फलेच्छा छोड़कर काम करना।

अन्तमें स्नातकको मेरी सलाह है कि वे अपने अक्षर सुधारें। सुन्दर अक्षर लिखना एक अच्छी कला हैं। वह बाह्य शिष्टताका लक्षण होना चाहिए। स्नातकका पत्र पढ़ने में मुझे बहुत ही मुश्किल हुई थी। खुद मैंने सुन्दर अक्षर लिखना न सीखा। विद्याकालमें मुझे न किसीने टोका, न सिखलाया और बादमें अक्षर सुधारने लायक समय ही न मिला। लेकिन अपने अक्षर पढ़नेका कष्ट मैं बहुतोंको देता हूँ इसीसे मैंने आत्मग्लानिका अनुभव करके स्नातकका पत्र पढ़नेका कष्ट उठाया है। स्नातक –

 

  1. प्रश्न था: क्या खादी आन्दोलनका यह आशय है कि सबमें धनका बराबर बँटवारा हो सके? क्या खादी आन्दोलनसे कभी यन्त्र-युगका नाश हो सकेगा?