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चींटी पर चढ़ाई


विद्यार्थी-मात्र – मेरी भूलसे सीख लेकर चेत जायें और अपने मित्रोंके लिए भी मोतीके दाने-जैसे अक्षर लिखना सीखें।

[गुजरातीसे ]

नवजीवन, १५-७-१९२८

७४. चींटी पर चढ़ाई

एक ओर पण्डित हृदयनाथ कुँजरू, श्री वझे और श्री अमृतलाल ठक्करकी बारडोलीकी जाँचने[१] रहे-सहे भारतीय नेताओंका संशय भी दूर कर दिया है और लोकमत सत्याग्रहियोंके पक्षम कर दिया है, तो दूसरी ओर यह अफवाह गर्म है कि सरकार चींटी पर सेना लेकर चढ़ आनेकी जबरदस्त तैयारियाँ कर रही है। कोई कहता है कि श्री वल्लभभाईके हाथमें बारडोलीकी सरदारी चले जाने देनेके कारण शिमला पहाड़ी पर विराजमान भारत सरकार, बम्बई सरकारको नालायक कहकर धमका रही है और बागडोर अपने हाथमें ले रही है। मानो बम्बई सरकारने साम, दाम आदि चारों नीतियोंका अच्छी तरह उपयोग करने में कुछ कमी छोड़ी हो। अफवाह तो यह भी है कि अभी जो पुलिस और जब्ती अफसरोंका काम बन्द है सो तो सिर्फ तूफानके पहलेकी अशुभ शान्तिका चिह्न है; यह तो सरकारकी नई और अधिक उग्र व्यूह-रचनाकी तैयारियोंकी दूरसे सुनाई पड़नेवाली भनक है।

किन्तु बारडोलीके सत्याग्रहियोंका इन सभी अफवाहोंके साथ कोई सम्बन्ध नहीं होना चाहिए। अफवाह झूठी हो तो उस हद तक सरकारकी बुराई और सत्याग्रहियोंकी कसौटी कम होगी और अगर सच्ची हो तो सरकारी पापके घड़ेमें जो कमी होगी, वह पूरी हो जायेगी और सत्याग्रहियोंको अपनी परीक्षा करनेका वांछित संयोग मिलेगा।

कहते हैं, 'सावधान सदा सुखी।' इस न्यायसे सत्याग्रहियोंको अधिक सावधान रहना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि अफवाह सच्ची हो और सरकार अचानक छापा मारकर, कुछ ऐसा काम कर बैठे जिसकी हमने कल्पना भी न की हो, और उससे सत्याग्रही घबरा जायें और सत्याग्रह-दल तितर-बितर हो जाये, और इस प्रकार वह हमारी की-कराई कमाई पल-भरमें नष्ट कर डाले।

जहाँका सेनापति चौबीसों घंटे जाग्रत हो, वहाँ चेतावनी देनेकी क्या जरूरत? जगे हुएको क्या जगाना? निरन्तर जाग्रति तो सत्याग्रहकी अनेक अनिवार्य शर्तोंमें से एक है। फिर सत्याग्रहीको जुदी-जुदी व्यूह-रचनाके जंजालमें भी नहीं पड़ना होता। उसकी व्यूह रचना सभी कालोंमें, सभी स्थलों, सभी अवसरों पर एक ही होती है। साहूजी इच्छा करें तो भी हजार आँखें कहाँसे लायें? सत्याग्रही अपना पहला और अन्तिम पाठ अपनी प्रतिज्ञाके साथ ही पढ़ लेता है। इसलिए सेनापति और उसकी सेनाका काम सरल, सीधा और सहज हो जाता है। सत्याग्रह एक तरहकी जड़ी-बूटी है। इसलिए उसकी शक्तिमें घट-बढ़की गुंजाइश ही नहीं है। सत्याग्रहीका एक ही

 

  1. देखिए परिशिष्ट १।