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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

टोटका छत्तीस रोगोंको हरनेवाला होता है। कोई जब्ती करे तो भी भला, जमीन छीन ले तो भी भला, जेलमें डाले तो भी भला, देश-निकाला दे तो भी भला, तलवारके घाट उतारे तो भी भला और तोपसे उड़ा दे तो भी भला। इनमें से जो किसी एक भी कसौटी पर न चढ़ सके, वह सत्याग्रही नहीं गिना जा सकता। सत्याग्रहीकी प्रतिज्ञाके टुकड़े नहीं किये जा सकते क्योंकि सत्यके टुकड़े नहीं हो सकते। सत्य एक ही है, अविभक्त है, अविभाज्य है, और तीनों कालमें उसकी यही स्थिति रहती है। सत्यकी उपमा मेहराबसे दी जा सकती है। मेहराबकी एक ईंट खिसकी कि सारी मेहराब गई। खोटा रुपया निन्यानवे दुकानोंमें चल जानेके आधार पर सौवीं दूकानमें चलनेकी शक्ति नहीं पा जाता। वह तो जन्मसे ही खोटा था। इतना ही है कि उसकी कसौटी देरसे हुई।

इसी तरह जो अन्तिम कसौटी पर भी न चढ़ सके, वह सत्याग्रही नहीं हो सकता, दूसरा और कुछ भले ही हो। उसके मर्यादित दुःख सहन करनेसे भले जनता ऊँची चढ़ी हो, भले ही उसे भी उसकी सहन शक्तिका लाभ मिला हो, किन्तु वह सत्याग्रहीकी पंक्तिमें नहीं खपता, उसे सत्याग्रही होनेका प्रमाणपत्र नहीं मिलता। सत्याग्रहीके बारेमें सोलनकी भाषामें कह सकते हैं, 'किसीको उसके मरणके पहले सत्याग्रही मत गिनना।[१]'

बारडोलीके सत्याग्रही इस वचनको याद कर लें और हृदय में उतार लें।

[गुजराती से]

नवजीवन, १५-७-१९२८

 

७५. आल्प्स या हिमालय

स्वदेशीकी भावनाकी समाप्ति खादीमें ही नहीं होती। जिन लोगोंमें स्वदेशी की भावना जाग्रत है वे अपनी अधिकांश आवश्यकताएँ अपने आसपासके देश अर्थात् स्वदेशमें पूरी करेंगे, उसीसे सन्तुष्ट रहेंगे और अपनी झोंपड़ीसे निराश होकर दूसरेके राजसी भवनसे ईर्ष्या न करेंगे और न ऐसे भवनोंको प्राप्त करनेके लिए बेकार दौड़-धूप ही करेंगे।

मेरे मनमें यह विचार एक मित्र द्वारा प्रेषित अल्मोड़ाके आगे स्थित हिमालयके दृश्यके निम्न मधुर वर्णनसे आया है:[२]

हिमालय के सामने आल्प्स तो मानो बच्चा है। यूरोपके लोगोंको आल्प्स पर मुग्ध होनेका अधिकार है। वे लोग उसकी घाटियोंमें आनन्दके रसका पान करते हैं और स्वास्थ्य लाभ करते हैं। उनको हिमालयको देखनेके लिए आनेकी जरूरत नहीं है; और यदि वे आते हैं तो आल्प्सके प्रति अपना कर्त्तव्य पूरा कर चुकनेके बाद आते हैं। हमारे पढ़े-लिखे लोग हिमालयको नहीं जानते। वे यह नहीं जानते कि उसकी वनस्पतियोंमें आरोग्य देनेका चमत्कारी गुण है। वे यह जानना भी नहीं चाहते।

 

  1. 'हिस्ट्रीज' में सोलनने हेरोडोटससे कहलवाया है कि मरणके पहले तक किसीको सुखी न कहें, बहुत हुआ तो आप उसे भाग्यवान कह सकते हैं।
  2. यह वर्णन यहाँ नहीं दिया गया है।