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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

वस्तुत: जिस व्यक्तिने लड़ाई आरम्भ होनेसे ठीक दो मास पूर्व व्यापार करना आरम्भ किया हो वह उनकी अपेक्षा बहुत कम अधिकारी है जो ट्रान्सवालमें दो वर्षसे व्यापारमें लगे थे। किन्तु युद्धके आरम्भ होनेपर व्यापार नहीं कर रहे थे। जैसा मैं कह चुका हूँ, कि इन तथाकथित बाजारोंमें किसी भी वर्तमान परवानेदारके लिए अपना व्यापार चलाना नितान्त असम्भव है। अतः मैं यह विश्वास करता हूँ कि आप श्री ब्रॉड्रिक या श्री लिटिलटनसे मुलाकात कर सकेंगे और इस तारके अनुसार कार्य आरम्भ कर देंगे।

आपका सच्चा,
मो॰ क॰ गांधी

दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (जी॰ एन॰ २२५९) से।

५२. पत्र: कांग्रेसको


[जोहानिसबर्ग]
दिसम्बर १, १९०३


सेवामें,

माननीय सचिवगण
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

मद्रास

प्रिय महोदयगण,

मैं बुकपोस्ट (रजिस्टर्ड) से उस बयानकी[१], जो यहाँके भारतीयोंने गत वर्ष श्री चेम्बरलेनको उनके डर्बन आनेपर दिया था, और उस प्रार्थनापत्रकी[२], जो स्थानीय विधानसभाको प्रवासीविधेयक स्वीकार करनेके विरोधमें दिया था, कुछ प्रतियाँ भेजता हूँ।

बयानसे आप नेटालमें १९०२ के अन्ततक भारतीयोंपर लगाई गई निर्योग्यताओंकी उचित कल्पना कर सकेंगे। तभीसे नेटाल ट्रान्सवाल द्वारा समुपस्थित उदाहरणके अनुकरणका प्रयत्न कर रहा है। मैं यहाँकी एक विशाल सभाकी कार्रवाईका[३] भी उल्लेख कर दूं जो इंडियन ओपिनियनमें छपी थी।

प्रवासी विधेयक हमारे विरोधके बावजूद दोनों सदनोंसे पास हो गया है और उसपर राजकीय स्वीकृति भी प्राप्त हो चुकी है।

इंडियन ओपिनियन आपको अंग्रेजीमें ताजीसे-ताजी खबरें और गुजरातीमें कुछ सुझाव भी देता है। मुझे ज्ञात हुआ है कि उसके मालिकने आपको पत्रके सब अंकोंकी कुछ प्रतियाँ भेजी है।

यदि भारत-सरकार मजबूत रुख इख्तियार नहीं करेगी, और वह भी तत्काल, तो मुझे भय है, नव वर्ष में दक्षिण आफ्रिकामें बहुत-से भारतीय बरबाद हो जायेंगे।

  1. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ २८६।
  2. वही खण्ड, पृष्ठ ३७०।
  3. देखिए इंडियन ओपिनियन, ४-६-१९०३।