बीच काम करनेका एक सुन्दर और अनूठा अवसर मेरे सामने है। … भारतीयोंके मानसका अध्ययन करने में मुझे अधिकसे-अधिक आनन्द आने लगा। भारतीयोंके मानस और अनुभूतिके कुछ अंग ऐसे हैं जिनके प्रति मेरे हृदयमें अत्यधिक आदर है। भारतीयोंकी बुद्धि अत्यन्त तीव, सूक्ष्म और सुसंस्कृत है। इससे उत्तम कोटिके भारतीय कैसे होते हैं। इसका परिचय हो जाता है। फिर उनकी आत्मानुशासन और स्वावलम्बनकी वृत्ति भी अत्यन्त अद्भुत है। इसके अतिरिक्त उनमें एक गहरी और सच्ची धार्मिक सहज-बुद्धि भी होती है। मेरा खयाल है कि इन विशेषताओंके कारण मानव जातिके भविष्य निर्माणमें भारत बहुत बड़ा योग दे सकता है। मैं उन लोगोंमें से हैं जो विश्वास करते हैं कि कुछ अच्छी और बुनियादी बातें ऐसी हैं जो सभी धर्मों में पाई जाती हैं। और संसारके सभी महान धर्मों में अच्छे नतीजे देने की क्षमता है। मैं भारतके जिन धर्मोंके सम्पर्कमें आया उन सभीके उत्तम फल भी मैंने देखे। आत्माकी आकांक्षाओंको प्रकट करने तथा अध्यात्म-जगतके ऊँचे प्रदेशोंमें मार्गदर्शन करनेकी क्षमताएँ इन धर्मों में हैं। और मुझे लगता है कि इन सब धर्मोका आचरण मनुष्योंको इन शक्तियोंके प्राप्त करने में मदद करता है। इसलिए इनकी त्रुटियोंके बारेमें लोगोंका चाहे जो खयाल हो यह मानना ही पड़ेगा कि इन धर्मों में ऐसी शक्ति और क्षमता जरूर है। तब कोई संकीर्णता और अश्रद्धाके साथ उनकी आलोचना करनेकी बात कैसे सोच सकता है? मेरी समझमें धर्मान्तर करानेवालेका काम मैंने यहाँ कभी किया ही नहीं। मैंने कभी किसी पढ़े-लिखे पुरुष या स्त्रीसे अपने धर्मकी शरण लेनेके लिए भी नहीं कहा। … यह कल्पना गलत है कि अंग्रेज भारतमें इसलिए आये हैं कि उसकी मददसे वे अपना कोई स्वार्थ-साधन करें। इसमें किसी भी प्रकारके स्वार्थ-साधनका हेतु नहीं है। अगर भारतकी सेवा, उसके सामाजिक जीवनको प्रगतिशील बनाना और संसारके कल्याण-साधनमें वह जिस-किसी प्रकार भी उपयोगी हो सकता है उसमें उसको सहायता करना अंग्रेजोंका उद्देश्य नहीं है तो उन्हें यहाँ नहीं रहना चाहिए। अगर अंग्रेजोंको इसमें जरा भी संदेह हो कि वे इस देशका भला नहीं कर रहे हैं तो उन्हें यहाँ सत्ताधारी बनकर रहनेका कोई अधिकार नहीं है। वे यहाँ धन और सत्ता प्राप्त करनेके लिए नहीं आये है। यहाँ तो वे न्यासी (ट्रस्टी) हैं। यहाँपर उनका काम और धंधा यह है कि वे आनेवाले वर्षोंमें भारतीयोंको ऐसा महान अवसर प्रदान करें, जिससे वे भौतिक, नैतिक और आध्यात्मिक वैभव प्राप्त कर सकें और उसके द्वारा वे मानवताकी सेवा कर सकें, जिसका मुझे विश्वास है।
यह तनिक लम्बा उद्धरण हमने इसलिए दिया है कि हमारे खयालसे बिशपके शब्द काफी प्रभावशाली हैं—उनके पद और उनके अपने निजी महत्त्वके कारण भी। उनका सारा भाषण और सभाकी कार्रवाई मनन करने लायक हैं—खास तौरपर दक्षिण आफ्रिका जैसे देशमें, जहाँ भौतिक महत्त्वाकांक्षाओं और स्वार्थलिप्साने मनुष्यके मानसपर इतना अधिकार कर रखा है। डॉ॰ मैकार्थरके विचारोंकी विशालता, उदात्तता और नम्रताका हमारे मनोंमें लवलेश भी हो तो जीवन आजकी अपेक्षा कहीं अधिक सह्य बन सकता है। हमारे यूरोपीय मित्रोंके लिए ये शब्द विशेष रूपसे स्वागत करने योग्य हैं, क्योंकि ये उनके अपने धर्माचार्यके मुखसे निकले हैं; और ब्रिटिश भारतीयोंके प्रति सही रुख क्या हो सकता है उसका निर्णय करनेमें इनसे