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प्रार्थनापत्रः ट्रान्सवाल-परिषदको

दी गई है। परन्तु इन परवानेदारोंको हिदायतें दे दी गई है कि उस तारीखको उन्हें उनके लिए निश्चित सड़कों या बाजारोंमें चला जाना होगा।

प्रार्थीकी नम्र रायमें खरीता उन तमाम वर्तमान ब्रिटिश भारतीय परवानेदारोंको, जो लड़ाईसे पहले ट्रान्सवालमें रहते थे, साफ तौरसे बाजार-सूचनाके अमलसे बरी करता है।

प्रार्थीके संघने सन् १८८५ के कानून ३ के अमलका सदा आदरपूर्वक विरोध किया है, क्योंकि वह स्वर्गीया महारानीकी सरकार और पिछली गणराज्य-सरकारके बीच मतभेदका विषय रहा है। वह पिछली लड़ाईके कारणोंमें से एक कारण था और ब्रिटिश संविधानके विपरीत है।

परन्तु अभी प्रार्थी इस सामान्य प्रश्नको उठाना नहीं चाहता। अभी तो वह यही आशा लेकर उपस्थित हुआ है कि यह माननीय सदन वर्तमान परवानेदारोंके साथ किसी प्रकारकी छेड़छाड़ नहीं होने देगा।

प्रार्थीके संघके पास जो जानकारी है उसके अनुसार जिन्होंने लड़ाईसे पहले कभी व्यापार नहीं किया, उनकी संख्या सम्भवतः एक सौसे अधिक न होगी। बाजारोंसे बाहर व्यापार करने के लिए उनके परवाने भी अगर नये कर दिये गये तो बाजार-सूचनाके सिद्धान्तको कोई आँच नहीं आनेवाली है; परन्तु स्वयं उन आदमियोंके लिए तो यह जीने और मरनेका सवाल है।

इसके अतिरिक्त "लड़ाई छिड़नेके समय या उससे तुरन्त पहले" इन शब्दोंके अमलसे बहुत भारी कठिनाइयाँ और ईर्ष्या-भरे भेदभाव उत्पन्न हो जायेंगे।

प्रार्थीके संघकी विनम्र राय है कि जो व्यक्ति सन् १८९९ के मध्यमें व्यापार करते थे उन्हें परवाने दे दिये जायें, परन्तु जो १८९८ के अन्तमें तो व्यापार करते थे और १८९९ के प्रारम्भमें नहीं, उन्हें इनकार कर दिया जाये, तो यह सरासर अन्याय होगा। फिर, यह भी सम्भव है कि सन् १८९९ में भी एक पेढ़ीके दो साझेदार रहे हों। अगर दोनों परवानोंके लिए अर्ज करें तो एकको दूसरेपर तरजीह देना आसान बात नहीं होगी।

ये केवल उन बहुत-सी कठिनाइयोंके उदाहरण हैं जो इस सूचनाके कारण कानूनको अमलमें लानेके वक्त उत्पन्न होंगी।

ब्रिटिश भारतीय सम्राट्की राजभक्त प्रजा हैं और वे शराबसे परहेज करनेवाले, मेहनती और कानूनके मुताबिक चलनेवाले माने गये हैं।

इसलिए प्रार्थीका संघ नम्र निवेदन करता है कि यह माननीय सदन इस विषयके पक्षमें विचार करे और सूचनामें ऐसा संशोधन करे कि आजके भारतीय परवानोंको मान्यता दी जा सके, बशर्ते कि परवानेदार यह सिद्ध कर सके कि लड़ाईके पहले वह ट्रान्सवालका निवासी था। यह न्यायपूर्ण और उचित तो होगा ही, माननीय श्री चेम्बरलेन और परमश्रेष्ठ लॉर्ड मिलनरकी उल्लिखित घोषणाओंके अनुरूप भी होगा।

और न्याय तथा दयाके इस कार्यके लिए आपका प्रार्थी, कर्तव्य समझकर, सदा दुआ करेगा।

जोहानिसबर्ग, आज तारीख ८ दिसम्बर, उन्नीस सौ तीन।

अब्दुल गनी
अध्यक्ष, ब्रिटिश भारतीय संघ

प्रिटोरिया आर्काइब्ज़: मूल अंग्रेजी प्रति की फोटो-नकल (पिटिशन एल॰ सी ॰४/०३) से।