पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/११२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

६०. लॉर्ड हैरिस और भारतीय मजदूर

जोहानिसबर्ग स्टारने लॉर्ड हैरिसका वह भाषण उद्धृत किया है जो उन्होंने गत १२ नवम्बरको केनन स्ट्रीट होटल, लंदनमें दक्षिण आफ्रिकाके संयुक्त स्वर्ण-क्षेत्रों (कान्सॉलिडेटेड गोल्ड फील्ड्ज) के हिस्सेदारोंकी साधारण सभामें दिया था। इस भाषणसे एशियाई मजदूरोंके प्रश्नपर लॉर्ड महोदयके विचारोंका हमें अधिक अच्छी तरह पता लग सकता है। हमें स्वीकार करना पड़ता है कि इस भाषणको पढ़कर हमें बड़ी निराशा हुई है और उनके प्रति सम्पूर्ण आदर रखते हुए हमें कहना पड़ता है कि जिन आर्थिक स्वार्थोका वे प्रतिनिधित्व करते हैं उनकी रक्षाकी अत्यधिक चिन्ताने उनके विचारोंको ढक लिया है। लॉर्ड हैरिस भारतीयोंको ऐसी शतोंपर लाना चाहते हैं जो उन्हें यहाँ अपने दिमागका, अगर ऐसी कोई चीज वे रखते हों, उपयोग करने से रोकें और गिरमिटकी अवधि पूरी हो जानेपर उनको जबरदस्ती वापस कर दें। इसमें इस बातका कोई खयाल नहीं किया जायेगा कि वे यहाँ अधिक अच्छी कमाई कर सकते है या नहीं। लॉर्ड हैरिसने यह खोज की है कि इसमें वास्तव में मजदूरोंका बहुत बड़ा हित होगा। लॉर्ड महोदय कहते हैं:

मुझे लगता है कि खानोंके लिए मजदूरोंको भरती करनेको इजाजत तब मिलेगी जब हम व्यापारीवर्गके साथ अधिक अच्छा व्यवहार करनेका वचन देंगे—इस शर्तमें कुछ अदूरदर्शिता मालूम होती है। …

कुली कोई बहुत पढ़े-लिखे तो होते नहीं। वे तो केवल शरीर-श्रम करनेवाले लोग होते हैं। भारतकी खानोंमें जिस प्रकारका व्यवहार मजदूरोंके साथ होता है उससे बुरा तो नहीं, बल्कि शायद अच्छा ही व्यवहार हम उनके साथ करेंगे। और ऊँची जातियोंके लोग उन्हें जिस तरह भारतमें रखते हैं उससे तो निश्चय ही हमारा व्यवहार बहुत अच्छा होगा। …

मेरा तो खयाल है कि अगर इस तरह मजदूरोंको भारतसे बाहर जाने और वापस लौटनेके लिए उत्साहित किया जायेगा तो सारे भारतके लोगोंको उससे बड़ा लाभ होगा।

हम इन बातोंका जवाब कुछ सीधे प्रश्न पूछ कर देना चाहते हैं:

क्या लॉर्ड महोदयको यह पता है कि भारतमें नीचेसे-नीचे वर्गका आदमी धीरज और अध्यवसायके बलपर ऊँचेसे-ऊँचे स्थानपर पहुँच सकता है? क्या वे जानते हैं कि अनेक भारतीय एक साधारण मजदूरकी स्थितिसे बहुत सम्मानित पदोंपर पहुँचे हैं? क्या यह सत्य नहीं है कि भारतीय गिरमिटिया मजदूरोंको जबरदस्ती स्वदेश लौटानेका कारण यह है कि गिरमिटसे मुक्त होनेपर व्यापार और दूसरे व्यवसायोंमें वे यूरोपीयोंके साथ होड़ करने लग जायेंगे? क्या यह कहने में अप्रत्यक्ष रूपसे भारत-सरकारकी निन्दा नहीं है कि भारतीय मजदूरोंके साथ खुद भारतमें जैसा व्यवहार होता है उसकी अपेक्षा टान्सवालमें अधिक अच्छा व्यवहार होगा? (व्यक्तिगत रूपसे हम नहीं मानते कि शारीरिक व्यवहारका प्रश्न यहाँ उठता भी है, क्योंकि हमारा दृढ़ विश्वास है कि ट्रान्सवालमें मजदूरोंके साथ काफी अच्छा व्यवहार होगा।) क्या लॉर्ड महोदय सचमुच मानते है कि यदि ऊँची जातिके लोग भारतमें नीची जातिके लोगोंके साथ विवेकपूर्ण बरताव नहीं करते हैं तो, इसी कारण, एक उदार शासनके