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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

किसी भी अवस्थामें नहीं दिया जा सकता। इस सम्बन्धमें हम उनका ध्यान श्री लाइन्सकी सूचनामें दी गई निम्न धाराकी ओर आकर्षित करते हैं:

उन दूकानों-मकानोंके सम्बन्धमें कोई परवाने न दिये जायेंगे जो निर्दिष्ट व्यापारके लिए अनुपयुक्त होंगे या जिनमें स्वास्थ्य और सफाईको उचित और आवश्यक व्यवस्था न होगी, या दोनों कामोंके लिए व्यवहृत होनेवाली इमारतोंके मामलेमें विक्रेताओं, मुहर्रिरों या नौकरोंके लिए गोदाम-घरों या उन कमरोंके अतिरिक्त, जिनमें माल और सामान रखा जा सके, पर्याप्त और योग्य स्थान न होगा।

यह निःसन्देह ऐसी व्यवस्था है जिसकी पूर्तिमें कोई भी हिचक या कठिनाई न होनी चाहिए। सचाई यह है कि लेडीस्मिथके अधिकतर भारतीय गोदाम इस प्रकारकी सभी आपत्तियोंसे मुक्त हैं, यह हम जानते है किन्तु यह बताना अच्छा है कि उल्लिखित धारा भाषा और भाव दोनोंकी दृष्टिसे कार्यान्वित की जानी चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १०-१२-१९०३

६२. सरकार तथा बारबर्टनके भारतीय

४ दिसम्बरके ट्रान्सवालके सरकारी गजटमें श्री डब्ल्यू॰ एच॰ मूअरके हस्ताक्षरोंसे एक सूचना छपी है जिसके द्वारा भारतीयोंकी वर्तमान बस्ती ही बाजारकी जगह निश्चित कर दी गई है। उसमें यह असाधारण अनुच्छेद भी है:

इस बाजारमें माहवारी किरायेदारीपर बाड़े केवल उन्हीं एशियाइयोंको दिये जायेंगे जो वर्तमानमें वहाँ रह रहे हैं या व्यापार कर रहे हैं। मियादी पट्टे नहीं दिये जायेंगे और किरायेदारोंको उपकिरायेदार रखनेका अधिकार नहीं होगा ('केवल' खुद सूचनामें ही दूसरे टाइपमें है)।

इस प्रकार बारबर्टनके आवासी मजिस्ट्रेट द्वारा जारी की गई सूचनाके जिस अत्यन्त आपत्तिजनक अंगकी तरफ कुछ समय पहले हमने पाठकोंका ध्यान खींचा था, उसे सरकारने कायम रखा है। अब बस्तीको बन्द करनेके विरोधमें आपत्ति करके वास्तविक न्याय पानेका प्रयत्न करनेपर भारतीयोंके सामने सम्भावना यह आती है कि उपकिरायेदार न रखनेकी नई शर्तके कारण उन्हें बगैर मुआवजेके बस्ती छोड़ नये बाजारमें जानेके लिए मजबूर होना पड़ेगा। पाठकोंको ज्ञात है कि इस नये बाजारके खिलाफ भी गंभीर आपत्तियाँ उठाई गई हैं। अगर वहाँ नहीं जाना है तो उन्हें बारबर्टनको ही छोड़ देना होगा। फिर भी लॉर्ड मिलनर कहते हैं कि बोअरोंके शासनकालमें भारतीयोंके साथ जैसा व्यवहार होता था उसकी अपेक्षा अब उनके साथ कहीं अच्छा व्यवहार हो रहा है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १०-१२-१९०३