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६३. "मॉर्निंग पोस्ट" और एशियाई मजदूर

अभी हमारे हाथोंमें जोहानिसबर्गके जो समाचारपत्र आये हैं उनमें मॉर्निंग पोस्ट द्वारा भारत-सरकारसे गिरमिटिया मजदूर भेजने के सम्बन्धमें की गई अपीलका समाचार छपा है। डेली मेलका संवाददाता कहता है कि पराये चीनियोंके बजाय ब्रिटिश भारतीय मजदूरोंसे खानोंकी खुदाई करवानेकी आशा अभी इस पत्रने छोड़ी नहीं है। उसने लिखा है कि यह पूरी तरह ब्रिटिश साम्राज्यके हितमें है कि भारत-मन्त्री श्री ब्रॉड्रिक भारतके वाइसराय लॉर्ड कर्जनसे ट्रान्सवालके साथ भारतीय मजदूरोंके बारेमें कोई समझौता करनेका आग्रह करें, जिसमें कुलियोंके साथ अच्छे व्यवहारका आश्वासन तो हो, परन्तु उन्हें राजनीतिक अधिकार देनेका नहीं। हम नहीं जानते कि "राजनीतिक अधिकार" से मॉर्निंग पोस्ट क्या समझता है, परन्तु हमें बड़ा भय है कि दक्षिण आफ्रिकामें इन शब्दोंका प्रयोग एक ऐसे नये अर्थमें करनेका विचार किया जा रहा है, जिसमें ब्रिटिश प्रजाजनोंके घूमने-घामने, व्यापार करने और रहनेके मामूली अधिकार भी सम्मिलित हो जायें। ब्रिटिश भारतीय मताधिकारकी आकांक्षा नहीं करते, परन्तु व्यापार करनेकी और जहाँ उनकी इच्छा हो वहाँ बसनेकी पूर्ण स्वतन्त्रताका—जहाँतक वह रंग-भेदके बगैर किये गये सफाईके प्रबन्ध और तत्सम्बन्धी रिवाजोंके विरुद्ध न पड़ती हो—आग्रह जरूर रखते हैं। अगर पोस्ट हमारी बताई इन बातोंको अच्छे व्यवहारका अंश मानता है तो हमें उसकी अपीलके विरोधमें कुछ भी नहीं कहना है; परन्तु जैसा कि ट्रान्सवालके लोग जोर दे रहे हैं, यदि इन मजदूरोंको जबरदस्ती स्वदेश लौटाया जानेवाला है, और उनपर दूसरे नियन्त्रण लगाये जानेवाले हैं, तो हमें कहना होगा—जैसा कि हमने बहुधा कहा है—कि इन व्यापारियोंके अधिकार हमें बहुत ही महँगे पड़ेंगे। और जब मॉर्निग पोस्ट जैसा प्रभावशाली अखबार भी ट्रान्सवालके लिए भारतीय मजदूरोंकी जरूरतपर जोर देता है तो भारतीयोंके हितैषी इंग्लैंड और दक्षिण आफ्रिकाकी घटनाओंपर जितनी भी सावधानीसे नजर रखें उतनी थोड़ी ही होगी।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १०-१२-१९०३