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६७. ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय

जोहानिसबर्गके अखबारों में हमने पढ़ा कि ट्रान्सवालकी विधान परिषदकी कार्रवाई प्रार्थनापूर्वक शुरू हुई। अपने भाषणके अन्तमें परमश्रेष्ठ परिषद अध्यक्षने सदस्योंको "सर्वशक्तिमान परमेश्वरके मार्गदर्शन में" सौंपा और उससे "अत्यन्त भावभरी प्रार्थना की कि उनकी सारी मन्त्रणाएँ उसकी महिमाको बढ़ायें और राज्यको समृद्ध बनायें।" और, उन्होंने विश्वास प्रकट किया कि "उन्हें अपने कार्यमें परमात्माका अनुग्रह प्राप्त होगा।" यह सब बहुत धर्ममय है और यहाँतक तो बहुत संतोषजनक भी है। जो ईश्वरका भय मनमें रखकर प्रत्येक कार्य करते हैं और अपने प्रत्येक कार्य में उसका मार्गदर्शन चाहते हैं, उनसे भय करनेकी कोई बात नहीं है। परन्तु दुर्भाग्यसे इस तरहकी बातें बहुत-कुछ रूढ़ बन गई है। हम प्रार्थना इसलिए करते है कि वह रिवाजमें आ गई है। हम ईश्वरकी मदद भी इसीलिए माँगते हैं कि वह भी एक रिवाज हो गया है, इसलिए नहीं कि हम उसे कोई विशेष महत्त्व प्रदान करते हैं या उसके पीछे सचमुच ऐसी कोई भावना होती है, जो उसकी मदद प्राप्त करने के लिए जरूरी है। हमें बहुत भय है कि, जब परमश्रेष्ठने प्रार्थना पढ़ी या अपने भाषणको समाप्त किया तब शायद उन्होंने अपने-आपसे यह प्रश्न भी नहीं पूछा कि परिषदके विचारणीय विषयोंमें कोई ऐसी बात तो नहीं है, जो सम्भवतः प्रभु-महिमाको बढ़ानेवाली न हो। खैर, हम तो वस्तुस्थितिको ही जाँचें। उपनिवेश सचिव श्री पी॰ डंकनने नीचे लिखे प्रस्तावकी सूचना दी:

एशियाइयोंके व्यापारके लिए बाजारोंकी तजवीज करनेके सम्बन्धमे ८ अप्रैल १९०३ को शासकीय सूचना ३५६को उपधारा ३ में 'लड़ाई' शब्दके बाद नीचे लिखे शब्द जोड़ दिये जायें—इसी प्रकारकी परिस्थितियों में उन एशियाइयोंको परवाने दिये जायें, जो लड़ाई शरू होते समय अथवा उसके तुरन्त पहले ऐसी जगहोंमें व्यापार करते थे, जिनको सरकारने विशेष रूपसे निश्चित नहीं किया था—भले ही उनके पास उस समय ऐसे व्यापारके लिए कानूनके अनुसार आवश्यक परवाने न भी रहे हों। वे तमाम व्यापारी, जो इस उपधाराके मातहत परवाने पानेकी मांग करें, इस सम्बन्धमें अपना सबूत राजस्व-अधिकारीके सामने पेश करें और उसको सन्तोष करा दें कि उनके सम्बन्धमें उपर्युक्त शर्तें पूरी हो जाती हैं।

इस प्रस्तावके बारेमें ब्रिटिश भारतीय क्या सोचते हैं, यह बतानेके लिए इंडियन ओपिनियनके इस अंकमें पाठकोंको काफी सामग्नी मिलेगी। इन स्तम्भोंमें हम अनेक बार बता चुके हैं कि बाजार-सम्बन्धी सूचना अनावश्यक है और वह स्वर्गीया महारानीके मन्त्रियों तथा श्री चेम्बरलेन द्वारा समय-समयपर दिये गये वचनोंके विपरीत है; परन्तु इस समय हम वह प्रश्न नहीं उठाना चाहते। हम तो ब्रिटिश भारतीय अर्जदारोंने अपनी दरखास्तमें जो स्थिति अपनाई है, केवल उसीकी जाँच करेंगे।

परन्तु ऐसा करनेसे पहले हम इस अवसरपर अपने ट्रान्सवालवासी देशभाइयोंको बधाई देते हैं कि, उन्होंने ऐसी सराहनीय क्रियाशीलता दिखाई है और इतने व्यवस्थित ढंगसे अपने प्रार्थनापत्र अधिकारियोंके सामने पेश किये हैं। उसी हफ्तेके मंगलवार और शुक्रवारके बीच विधानसभाको प्रार्थनापत्र देना, सदस्योंको एक लम्बा गश्तीपत्र भेजना और सफल सार्वजनिक