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एक सामान्य पत्र

उसकी कमीकी पूर्ति संघकी प्रार्थनाके अनुसार नहीं की जाती। उसमें उन ब्रिटिश भारतीयोंके निहित स्वार्थोंकी रक्षाकी बात है जो बोअरोंके शासनमें ब्रिटिश प्रतिनिधिके हस्तक्षेपसे बस्तियों या बाजारों के बाहर परवानोंके बिना व्यापार करते थे। अगर आप उसी संरक्षणको अब भी जारी रखनेका विरोध करेंगे जब ब्रिटिश सरकार उसे देनेकी अधिक अच्छी स्थितिमें है तो मुझे इससे दुःख और आश्चर्य ही होगा।

और यदि आप सब उपनिवेश-सचिवके वर्तमान परवानेदारोंको संरक्षण देनेके प्रस्तावको मंजूर करेंगे तो, आप उस प्रस्तावकी पूर्ति ही करेंगे।

उपनिवेशमें कदाचित् बाजारोंसे बाहर ६०० से अधिक एशियाई परवानेदार नहीं हैं। इनमें से ५०० पर बाजार-सूचना और प्रस्तावित संशोधनका असर नहीं होगा। इसलिए केवल १०० परवानेदार ऐसे रहेंगे जो सूचनाके अन्दर नहीं आते हैं। तर्क यह है कि इन १०० परवानेदारोंके अधिकार भी उतने ही ध्यान देने योग्य है जितने दूसरोंके। क्योंकि वे सभी ट्रान्सवालके ही भूतपूर्व निवासी हैं और उनको ब्रिटिश अफसरोंने किसी प्रकारके प्रतिबन्धके बिना गत वर्ष परवाने दिये थे। इसलिए यदि आप ५०० परवानेदारोंपर से अपनी आपत्ति हटा लेंगे तो शेष परवानोंको भी उसी कोटिमें रखनेसे न्यूनतम न्यायकी पूर्ति ही होगी।

कदाचित् आप लड़ाईसे पहले डचेतर गोरा समितिके सदस्य थे। यदि ऐसी बात है तो मैं यह कह सकता हूँ कि ठीक युद्धसे पूर्व समितिने बड़ी प्रसन्नतासे अपने विचारोंके प्रसारके लिए भारतीयोंका सहयोग प्राप्त किया था। भारतीयोंको समान उद्देश्यकी पूर्तिके लिए साथ लेनेके पक्षमें समितिका एक तर्क यह था कि अंग्रेजोंका अधिकार होनेपर भारतीयोंको १८८५ के कानून ३ द्वारा लगाई गई निर्योग्यताओंसे पीड़ित न होना पड़ेगा। इसलिए निवेदन है कि मेरा संघ इस आश्वासनपर अमलकी आशा करनेका अधिकारी है।

भारतीय ब्रिटिश प्रजा हैं। भारतको ब्रिटिश राजनीतिज्ञोंने ब्रिटिश ताजका अत्यन्त प्रकाशमान रत्न बताया है। वह साम्राज्यकी लड़ाइयाँ लड़नेके लिए सदैव उद्यत है। नेटालमें कदाचित् भारतीय सेनाने ही स्थिति बिगड़नेसे बचाई थी। स्थानीय भारतीय भी अपना हिस्सा अदा करने में पीछे नहीं रहे थे। उसी समाजके सदस्योंके लिए मेरा संघ आपकी सहानुभूतिकी प्रार्थना करता है और वह भी उस मामले में, जो भारतीयोंके लिए तो बहत अधिक महत्त्वका है, फिर भी आपके लिए अपेक्षाकृत महत्त्वहीन है। इसलिए मेरा संघ विश्वास करता है कि असोसिएटेड चेम्बर्स अपनी बैठकमें समस्त वर्तमान भारतीय परवानोंकी रक्षाके लिए सिफारिश करेगा।

आपका आज्ञाकारी सेवक,
अब्दुल गनी
अध्यक्ष, ब्रिटिश भारतीय संघ


[अंग्रेजीसे]

इंडिया ऑफ़िस: ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स, ५७/१९०४।