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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

की सत्ता स्वीकार करें, जिसे वास्तवमें हिन्दू और ईसाई दोनों ही स्वीकार करते हैं तो " तत्"—"वह तत्व" अज्ञेय नहीं हो सकता।

हिन्दू कहते हैं: वह जाना जा सकता है। ईसाई भी ऐसा ही कहते हैं—" जिन्होंने मुझे जान लिया उन्होंने परमपिताको जान लिया।" किन्तु फिर इस उद्धरणका अर्थ क्या है? कदाचित् शब्दोंको छोड़कर दोनों बातोंमें कोई अन्तर नहीं है। "जब कुहरा हट जायेगा तब हम एक दूसरेको अधिक अच्छी तरह पहिचानेंगे।" तबतक यदि हम मतभेदकी बातोंकी अपेक्षा एकताकी बातोंको खोज निकालनेकी कोशिश करें तो क्या वह सम्भव नहीं है कि हमें कुछ पहले उस स्थितितक पहुँचने में सहायता मिले।

[अंग्रेजीसे]

कुमारी केली केम्बेल, डर्बन के सौजन्यसे प्राप्त हस्तलिखित मूल प्रतिसे।

७५. पिछले सालका सिंहावलोकन
ट्रान्सवाल

गत वर्ष इन दिनों ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय आशासे परिपूर्ण थे; क्योंकि श्री चेम्बरलेन उन्हें आशा दिलाते आ रहे थे कि जो लोग इस देशमें बस गये हैं और जिन्हें सामान्य प्रवासी अधिनियमके अनुसार उपनिवेशमें आ जानेकी अनुमति मिल सकती है, वे तो, बहरहाल, "न्यायोचित और सम्मानास्पद व्यवहारके अधिकारी"[१] होंगे ही। उस वक्त स्थिति बहुत अनिश्चित थी। व्यापारियोंके नाम सूचनाएँ जारी की गई थी कि उनके परवाने नये नहीं किये जायेंगे। १८८५ का कानून ३ उपनिवेशकी कानूनकी किताबमें अब भी मौजूद था। ट्रान्सवालके कुछ भागोंमें पैदल-पटरीके नियमों तकको कार्यान्वित कराया जा रहा था। जोहानिसबर्गकी भारतीय बस्तीके निवासियोंका भाग्य अधरमें झूल रहा था। बस्तीकी सफाई सम्बन्धी हालतके बारेमें डॉ॰ पोर्टरकी खयाली रिपोर्ट नंगी तलवारकी तरह उनकी गरदनपर लटक रही थी। उपनिवेश भरके श्वेत-संघ सभाएँ करके सरकारसे मांग कर रहे थे कि जो ब्रिटिश भारतीय उपनिवेशमें पहले ही बस गये हैं उनपर और पाबन्दियाँ लगाई जायें। एशियाई दफ्तरोंके तौर-तरीकोंसे भारी शरारत हो रही थी। जोहानिसबर्ग के दफ्तरमें भ्रष्टाचारका बोलबाला था और शरणार्थी तबतक उपनिवेशमें घुस नहीं सकते थे, जबतक कि परवाने लेने के लिए दोनों हाथों धन न उलीचें। और, कई अवसरोंपर ये परवाने निकम्मे कागज ही होते थे। श्री चेम्बरलेनसे प्रिटोरियामें जो शिष्टमण्डल मिला था उसके सामने उनका जोरदार बयान ही कठिनाइयोंके इन घने बादलोंको चीरकर दिखाई देनेवाली आशाको एकमात्र किरण था, हालाँकि, दुर्भाग्यवश, वह बादलोंको छिन्न-भिन्न करने के लिए काफी सबल सिद्ध नहीं हुआ। आगे चलकर, अर्थात् पिछले अप्रैलके महीनेमें, जब भारतीयोंने सरकारसे प्रार्थना की कि उनके दर्जेकी साफ-साफ व्याख्या कर दी जाये और मौजूदा परवानोंके बारेमें आश्वासन दिया जाये, तब सरकारने बाजार-सूचनाके नामसे मशहूर, सूचना ३५६ भारतीय समाजपर लाद दी और १८८५ के कानून ३ के अनुसार, जो पिछले कई वर्षोंसे निःसत्व पड़ा हुआ था, ३ पौंडका पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन)-कर वसूल करने के लिए कप्तान हैमिल्टन फाउलको एशियाइयोंका रजिस्ट्रार मुकर्रर

  1. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ३०६।