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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

कहाँ तय किया जायेगा। कुछ भी हो, वह स्थान मौजूदा जगहके बराबर लाभदायक हरगिज़ नहीं होगा।

संक्षेपमें, ट्रान्सवालकी यह स्थिति है। एशियाई गिरमिटिया मजदूरोंको लानेकी धमकीसे गड़बड़ी और बढ़ रही है, और इतने अधिक गिरमिटिया लोगोंका अस्तित्व भारतीयोंको बाँधनेवाले बन्धन और भी कड़े करनेका बहाना बनाया जायेगा। किन्तु दक्षिण आफ्रिकामें लॉर्ड मिलनर एक मजबूत आदमी हैं। सही या गलत, जब उन्हें विश्वास हो गया कि युद्ध आवश्यक है तो सारे विरोधके बावजूद उन्होंने उसे पार लगाया। इसलिए हम आशा रखते रहेंगे कि परमश्रेष्ठने जो वचन दिये हैं उन्हें वे पूरा कर सकेंगे और ब्रिटिश भारतीयोंके बारे में सरकारी नीतिके सिद्धान्त साफ तौरपर तय कर सकेंगे। स्वार्थी व्यापारियोंका भारतीयोंके प्रति द्वेष निःसन्देह प्रबल है, मगर हमारी रायमें यह और भी बड़ा कारण है कि परमश्रेष्ठ दृढ़ रहें और सबलोंके विरोधसे निर्बलोंकी रक्षा करें।

ऑरेंज रिवर कालोनी

इस उपनिवेशका विचार करते है तो निराशा ही हाथ लगती है। वर्तमान शासनने पुराने गणराज्यके भारतीय-विरोधी कानूनोंकी सतर्कताके साथ रक्षा की है और उन पर हर तरहकी दस्तन्दाजीको रोका है। जैसा कि इन स्तम्भोंमें बताया गया है, उसने आगे बढ़कर पेशगी विधान भी पास किया है। तमाम रंगदार प्रजापर नियन्त्रणकी असाधारण शक्ति उसने नगरपालिकाओंको सौंपी है। श्री चेम्बरलेनने मामलेपर बारीकीसे विचार करके जल्दी ही सुविधा कर देनेका वचन दिया था; किन्तु उसका कोई फल नहीं निकला। ब्रिटिश शासनके लगभग दो वर्ष बाद भी ऑरेंज रिवर उपनिवेशमें किसी भी स्तरके भारतीयका प्रवेश नहीं है। जो कुछ बरसों पहले उस उपनिवेशमें व्यापार करते थे उन्हें भी वापस आनेकी इजाजत नहीं है। हमने यहाँतक सुना है कि सारी प्रारम्भिक कार्रवाइयोंमें से गुजर चुकनेके बाद जो थोड़े-से भारतीय नौकरोंकी हैसियतसे कालोनीमें रहते थे, अभी पिछले महीने में उन्हें इसलिए गिरफ्तार किया गया और उनपर जुर्माना भी किया गया कि, शायद वे पहलेसे भिन्न कोई नौकरी इस समय कर रहे थे। श्री लिटिलटनको[१] उदार साम्राज्यवादी भावनाएँ रखनेका श्रेय प्राप्त है। वे जिस पदपर है वहाँ अपने साम्राज्यवादको कसौटीपर परख सकते हैं। क्या वे अवसरके अनुकूल प्रवृत्त होकर उपनिवेशका द्वार ब्रिटिश भारतीयोंके लिए खोल देंगे?—बेशक बिना प्रतिबन्धोंके नहीं; क्योंकि यह मुद्दा हमने मान लिया है कि दक्षिण आफ्रिकामें रंग-द्वेषके अस्तित्वको ध्यानमें रखकर प्रवास-नियमनके लिए सर्व-सामान्य कानून बनाया जा सकता है; किन्तु हमारा यह दृढ़ मत है कि किसी भी वर्ग, धर्म या रंगके आदमीको प्रवासी कानून द्वारा लगाई हुई शर्ते पूरी करने के बाद किसी भी ब्रिटिश उपनिवेशमें और अपनी रुचिका उद्यम करनेका अधिकार होना चाहिए।

नेटाल

इधर ज्यादा नजदीककी बात लें तो बहुत-कुछ कहने को नहीं है। प्रिटोरियामें ब्रिटिश भारतीय शिष्टमण्डलके मिलनेपर श्री चेम्बरलेनने जो उत्साहवर्धक शब्द कहे थे वे ही उन्होंने डर्बन और पीटरमैरित्सबर्गके शिष्टमण्डलोंसे भी कहे। प्रवासी-प्रतिबन्धक कानन अधिक कठोर हो गया है। शैक्षणिक धारा इस तरह संशोधित कर दी गई है कि यदि प्रवासी-अधिकारी चाहे तो किसी भी व्यक्तिका जाँचमें सफल होना बहुत मुश्किल हो जायेगा। किन्तु यह बहुत ज्यादा

  1. चेम्बरलेनके बाद लिटिलटन १९०३ में उपनिवेश-मन्त्री नियुक्त हुए।