केप कालोनी
इस सबसे पुराने उपनिवेशमें कहने लायक बहुत-कुछ नहीं है। प्रवासी अधिनियम पिछली जनवरीमें लागू किया गया था। सुनते है वह खास सख्तीसे अमलमें नहीं लाया जा रहा है। उस तरहके कानूनके अमल में कुछ कठिनाइयोंका आना स्वाभाविक है। किन्तु कुल मिलाकर अधिकारीगण उसकी कठोरता कम करने के लिए उत्सुक जान पड़ते हैं।
ईस्ट लंदनमें बस्ती कानून और पैदल-पटरी कानूनने, जो, जरूरत पड़ेगी, यह मानकर, पहलेसे ही बना लिये गये थे, एक समय तो काफी खीझ उत्पन्न कर दी थी। किन्तु अब सुनते हैं भद्रवेशी ब्रिटिश भारतीय छूटका प्रमाणपत्र लिए बिना भी पैदल-पटरियोंपर चलते हैं और उनको सताया नहीं जाता। बात अभी तो सन्तोषजनक दिखाई देती है, किन्तु हमारी रायमें ऐसा उपनियम नगरपालिकापर कलंक है और जितनी जल्दी यह उठा लिया जाये उतना नगरपालिकाके लिए श्रेयस्कर होगा। यह एक विडम्बना है कि सम्राटकी सरकारने ऐसे कानूनको उस उपनिवेशमें अनुमति दे दी जिसमें भारतीय-विरोधी कानून कमसे-कम त्रासदायक हैं। फिर भी ब्रिटिश भारतीय इससे इतना सबक तो ले ही सकते हैं कि अगर कोई समाज अपने हितोंके प्रति जागरूक न रहे तो वह ब्रिटिश सरकारके मातहत फूल-फल नहीं सकता।
अपनी बात
दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थितिके इस संक्षिप्त सिंहावलोकनके अन्तमें हम कुछ अपनी भी कहने की अनुमति चाहते हैं। अभी इंडियन ओपिनियनको प्रकाशित होते मुश्किलसे सात महीने हुए हैं ; किन्तु हम समझते हैं, इस थोड़ी-सी अवधिमें ही उसने एक विशिष्ट स्थान बना लिया है। उसे जो कुछ प्रतिष्ठा मिली उसका उपयोग हमने समाजके और साम्राज्यके, जिसका अंग होनेका हमें अभिमान है, हितमें करनेकी कोशिश की है। हमने जो कार्यक्रम बनाया है वह महत्त्वाकांक्षापूर्ण है। वह पूरा-पूरा सम्पन्न नहीं किया जा सका है—उसके निर्माताओंकी यह अपेक्षा भी नहीं थी कि वह सारा-का-सारा एकदम पूरा हो जायेगा। वह तो हमारा लक्ष्य है, जिसे हम यथासम्भव जल्दी प्राप्त करना चाहते हैं। एक सिद्धान्तपर हमने अडिग रहनेका प्रयत्न किया है—जो खालिस तथ्य है उससे कभी अलग न होना; और वर्ष में जो कठिन सवाल सामने आयें उन्हें निपटाने में, हमारा खयाल है, हमने जितनी अधिक नरमीसे उस समयकी परिस्थितियों में काम लिया जा सकता था, उतनी नरमीसे काम लिया है। हमारा कर्तव्य बहुत सीधा-सादा है। हम समाजकी और, अपने निजी नम्र ढंगसे, साम्राज्यकी सेवा करना चाहते हैं। हमें जिस कार्यको उठानेका सौभाग्य प्राप्त हुआ है, उसकी पवित्रतामें हमारा विश्वास है। सर्वशक्तिमान परमेश्वरकी करुणामें हमारी अचल निष्ठा है और ब्रिटिश विधानमें हमें पूरा भरोसा है। ऐसी हालतमें यदि हम चोट पहुँचानेके लिए कुछ लिखें तो हम अपने कर्तव्यसे च्युत होंगे। तथ्य कटु हों या मधुर, उन्हें हम सदा पाठकोंके सामने रखेंगे। जनताके सामने उन्हें उनके नंगे रूपमें लगातार पेश करते रहने से ही दक्षिण आफ्रिकामें दोनों समाजोंके बीचकी गलतफहमी हटाई जा सकेगी। यदि इसे जल्दी हटाने में हम थोड़ी-बहुत भी मदद कर सके तो यही हमारे लिए काफी पुरस्कार हो जायेगा।
इंडियन ओपिनियन, ७-१-१९०४