७६. ट्रान्सवालमें मजदूर-समस्या
सर जार्ज फेरारका प्रस्ताव[१]:
सरकारका ध्यान ट्रान्सवाल मजदूर आयोगकी रिपोर्टकी[२] तरफ दिलाया जाये और सरकारसे एक ऐसे अध्यादेशका मसविदा पेश करनेका अनुरोध किया जाये, जिसके अनुसार विटवॉटर्सरैंड इलाकेकी खानोंमें मजदूरोंकी भर्ती पूरी करनेके लिए अकुशल रंगदार गिरमिटिया मजदूर बाहरसे बुलाये जा सकें और उनपर ऐसी पाबन्दियाँ लगाई जा सकें जिनसे वे अकुशल मजदूरोंके तौरपर ही नौकर रखे जा सके और करार पूरा होनेपर अनिवार्य रूपसे स्वदेश लौटाये जा सकें; और इसलिए कि इस महत्त्वपूर्ण मामलेपर पूरा विचार किया जा सके, अध्यादेशका मसविदा इस परिषदमें पेश होने के काफी पहले अंग्रेजी और डच भाषामें प्रकाशित कर दिया जाये।
यह प्रस्ताव एक बहुत लम्बी बहसके बाद जबरदस्त बहुमतसे स्वीकार कर लिया गया। पक्षमें २२ और विपक्षमें केवल ४ मत—सर्वश्री बोर्क, लवडे, रेट और हलके—थे।
सर जॉर्ज फेरार ३ घंटे से अधिक बोले। श्री हल ४ घंटे बोले, लेकिन इस अवसरका मुख्य भाषण शायद सर रिचर्ड सॉलोमनका था। अवसर अनोखा था, और सारे दक्षिण आफ्रिकाके इतिहासमें न सही, ट्रान्सवालमें ब्रिटिश राज्यके इतिहासमें वह एक महत्त्वपूर्ण घटना समझी जायेगी। बेशक, प्रस्तावके पक्षमें बोलनेवालोंने जोरदार ढंगसे अपना मामला रखा, फिर भी हमारी रायमें उससे हम कई वर्ष पीछे ढकेल दिये गये हैं और हमारा निश्चित खयाल है कि सर जॉर्ज फेरार और उनके समर्थक आगेकी ओर नहीं देख सके। जो व्यक्ति बड़े-बड़े मुनाफ़ोंके लिए झगड़ रहे हैं, उनका यह रुख तो हम भलीभांति समझ सकते है कि जिस प्रश्नमें ऐसे मुनाफोंका त्याग निहित हो, उसपर वे निष्पक्ष दृष्टि नहीं रख सकते। ऐसी ही स्थितिमें दूसरे लोग होते तो शायद वे वही दृष्टि रखते जो एशियाइयोंके समर्थकोंने रखी है। यह दलील निःसन्देह लचर है कि, चीनी मजदूरोंके विनियमन पर सरकार जो पाबन्दियाँ लगायेगी वे इतनी बड़ी होंगी कि उनसे एशियाई-विरोधियोंकी उठाई हुई सारी आपत्तियोंका जवाब मिल जायेगा। जो सज्जन इस तरह तर्क करते हैं वे इस हकीकत पर ध्यान नहीं देते कि चीनी भी मनुष्य हैं; और प्रतिबन्ध कितने ही कड़े लगाये जायें, तो भी दक्षिण आफ्रिकाके सारे समाजपर उनका असर पड़े बिना नहीं रह सकता। अवश्य ही हम एशियाई-विरोधियोंसे इस बात में सहमत नहीं हैं कि चीनी लोग दूसरे लोगोंसे जरा भी ज्यादा चरित्रहीन हैं, या क्षुद्र प्राणी हैं। गिरमिटिया चीनियोंकी ही नहीं, भारतीयोंकी भी इतनी बड़ी संख्यामें मौजूदगीपर हमारा ऐतराज़ यह है कि उसका दक्षिण आफ्रिकाके भविष्यपर प्रभाव पड़े बिना नहीं रह सकता, और गोरोंके दृष्टिकोणसे तो वह प्रभाव और भी बुरा होगा। यदि दक्षिण आफ्रिकामें किसीको जबरदस्ती लाना है तो निःसंदेह ब्रिटिश द्वीप समहके निवासियोंको ही लाना चाहिए, और किसीको नहीं। यह अपेक्षा करना व्यर्थ है कि समय पाकर हालात अपने आप ऐसे हो जायेंगे कि गोरोंको हाथसे काम करने में आपत्ति न रह जायेगी। सम्भावना यही है कि जब एक बार दक्षिण आफ्रिका या ट्रान्सवालके यूरोपियोंको हाथसे काम करना