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७७. ट्रान्सवालमें गिरमिटिया मजदूर-अध्यादेशका मसविदा

अन्यत्र हम ट्रान्सवालमें गैर-यूरोपीय अकुशल मजदूरोंके प्रवेशका नियमन करनेवाला अध्यादेश पूराका-पूरा उद्धृत कर रहे हैं। सरकारने सर जॉर्ज फेरारके प्रस्तावपर तड़ाकेसे कार्रवाई की है। अध्यादेशका मसविदा होशियारीसे बनाया गया है। मगर सरकारको इस कारगुजारीपर बधाई नहीं दी जा सकती। एक ईसाई ब्रिटिश सरकार इस जाग्रत शताब्दीमें ऐसे प्रस्ताव पेश कर सकती है, जैसे कि अध्यादेशके मसविदेमें रखे गये है—यह आधुनिक सभ्यताकी हालत पर दुःखपूर्ण टीका है। सदसद् विवेककी किसी भी दृष्टिसे अध्यादेशका मसविदा काफी कठोर है, और वह हजारों चीनियों या अन्य एशियाई जातियोंको, जिन्हें उसके अनुसार इस देशमें लाया जायेगा; भारवाही पशु बना डालेगा। उनका आना-जाना उनके काम करनेकी जगहोंमें एक मीलकी परिधिके भीतर सीमित रखा जायेगा और उन जगहोंको वे बाकायदा हस्ताक्षर किये हुए पासोंके बिना नहीं छोड़ सकेंगे, और सो भी ४८ घंटेसे अधिक समयके लिए नहीं। उनमें कोई कौशल हो तो भी वे उसे काममें नहीं ला सकेंगे और, जैसा भी तय हो, तीन या पाँच वर्षके अन्तमें वे ट्रान्सवालसे वापस भेज दिये जायेंगे। जबरदस्ती वापस भेजनेकी क्रियाको लागू करनेका तरीका बहुत सीधा-सादा और कारगर है; परन्तु उतना ही अमानुषिक भी है। जिस धाराके अनुसार जबरदस्ती वापस भेजनेका नियमन किया जायेगा उसमें कहा गया है कि अगर गिरमिटिया मजदूरोंमें से कोई वापस जाने से इनकार करेगा तो उसे एक तरहसे स्थायी कैद भुगतनी होगी, और यह तभी खत्म होगी जब वह देशसे बाहर निकाल दिया जाना मंजूर कर लेगा। इस प्रकार, परिस्थितिवश ट्रान्सवालमें फिर संशोधित गुलामीका युग लाया जायेगा। खानोंका काम किसी भी कीमतपर जारी रहना ही चाहिए—भले इसमें ब्रिटिश नीतिके अत्यन्त स्नेह-संरक्षित सिद्धान्तोंका बलिदान ही क्यों न करना पड़े। इंग्लैंडमें ऐसे लोग हैं, जिन्हें दूसरे देशोंके कामोंकी बड़ी चिन्ता लगी रहती है और वे दक्षिण अमेरिका और दूसरी जगहोंके लोगोंको, जो इनकी रायमें ईसाकी शिक्षासे गिर रहे है, उपदेश देते रहते हैं। पता नहीं वे इस प्रस्तावित अध्यादेशके बारेमें क्या कहेंगे, जो ग्रेट ब्रिटेन और आयलैंडके राजा तथा भारतके सम्राटके नामपर ट्रान्सवालमें जारी किया जानेवाला है।

भारतीयोंके लिए अध्यादेशका यह मसविदा सिर्फ दिमागी दिलचस्पीकी चीज नहीं, उससे ज्यादा है। क्योंकि भारत-सरकारके ट्रान्सवालकी अनुनय-विनय मान लेने भरकी देर है, और उपनिवेश-सरकार खुशी-खुशी भारतके लोगोंको इस कीमती अध्यादेशका तुहफा दे डालेगी।

धारा २९ में यह कहा गया है कि,

इस अध्यादेशको कोई बात इस उपनिवेशमें लेफ्टिनेंट गवर्नर द्वारा उन ब्रिटिश भारतीयोंके लाये जानेपर लागू नहीं होगी, जिन्हें गवर्नरके मंजूर किये हुए रेल-मार्ग बनाने पर या दूसरे निर्माण कार्योंपर लगाया जायेगा; किन्तु हमेशा शर्त यह होगी कि ऐसा प्रवेश, उन नियमोंके अनुसार हो जिन्हें विधान परिषद मंजूर करेगी और यह भी शर्त होगी कि इस अध्यादेशके मजदूरोंको स्वदेश लौटानेके नियम, आवश्यक परिवर्तनोंके साथ, ब्रिटिश भारतीयोंपर लाग होंगे।