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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

समाजने अबतक जानबूझकर अपनी कानूनी स्थितिका सहारा नहीं लिया है। उसने यह आशा रखी थी कि अन्तमें सरकार उसके साथ न्याय करेगी। परन्तु यदि सरकार अपने कर्तव्यको तिलांजलि देकर भारतीय समाजकी रक्षा करनेसे इनकार करती है तो भारतीय समाजको सर्वोच्च न्यायालयकी सहायता लेकर इस प्रश्नकी जांच करानी ही चाहिए कि निवासमें व्यवसाय सम्मिलित है या नहीं। १८८५ के कानून ३ का मंशा है कि भारतीय अलग बस्तियोंमें रहें; व्यापारके बारेमें वह कुछ नहीं कहता। बोअर उच्च न्यायालयने बहुमतसे फैसला दिया है कि भारतीयोंके लिए निवासमें व्यवसाय सम्मिलित है। हम नहीं समझते कि सर्वोच्च न्यायालय इस फैसलेको बन्धनकारी मानेगा। कुछ भी हो, मुद्दा महत्त्वका और विचारणीय है; और यद्यपि हमें अब भी आशा है कि कानूनी दावेकी नौबत नहीं आयेगी, फिर भी यदि सरकार तमाम मौजूदा परवानेदारोंकी रक्षा न करनेका आग्रह रखेगी तो उपनिवेशकी सबसे ऊँची अदालतमें अपील करनेके सिवा हमें और कोई उपाय दिखाई नहीं देता।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १४-१-१९०४

७९. पैदल-पटरी उपनियम

इसी ७ तारीखको प्रिटोरियाकी नगर परिषदकी एक बैठकमें श्री लवडेने प्रस्ताव रखा कि,

पुलिसको दी गई इन हिदायतोंको देखते हुए कि रंगदार लोगोंको पैदल-पटरियाँ इस्तेमाल करनेसे न रोका जाये, परिषद तुरन्त प्रिटोरियाके नागरिकोंके अधिकारों, रीति-रिवाजों और विशेष सुविधाओंके इस दुरुपयोगकी रोकथामके लिए कदम उठाये।

प्रस्ताव पेश करते हुए उन्होंने अपने भाषणमें कुछ असाधारण बातें कहीं और यद्यपि उनकी वे बातें ज्यादातर काफिरोंपर लागू होती हैं, फिर भी यह स्पष्ट है कि उनके सपाटेमें सभी रंगदार आ जाते हैं। स्पष्ट रूपसे उनके लेखें काफिर घृणाके पात्र हैं और शिक्षामें वे कितने ही उन्नत क्यों न हों, वे पैदल-पटरीपर चलनेके योग्य भी नहीं है। किन्तु हम काफिरोंके कोई वकील नहीं हैं। फिलहाल हमारा सम्बन्ध उन बहुत अजीब दलीलोंसे है, जो श्री लवडेने अपने प्रस्तावके समर्थनमें दी हैं। उनके खयालसे यदि काफिरोंको—और काफिर ही क्यों, किसी भी रंगदार आदमीको-पैदलपटरियों पर चलने दिया जायेगा, तो उन्हें नगरपालिकाका मताधिकार—राजनीतिक मताधिकार—मिल जायेगा और वह उनके साथ विधान-परिषदमें बैठेगा। क्या हम इन माननीय सज्जनको याद दिलायें कि अभी उस दिन यही सरकार जिसने, बताते हैं, अच्छे कपड़े पहने हुए वतनियोंको पैदल-पटरियोंपर चलनेसे न रोकनेकी पुलिसको हिदायतें दी हैं, तमाम रंगदार लोगोंको नागरिक मताधिकारसे वंचित करनेको राजी हो गई थी? अपने मुद्दे साबित करने के प्रयत्नमें श्री लवडेने अपने श्रोताओंको बताया कि भारतमें भारतीयोंको उसी रेलके डिब्बे में सफर नहीं करने दिया जाता जिसमें यूरोपीय सफर करते हैं। हम यह जानने के लिए बहुत उत्सुक हैं कि उन्हें यह जानकारी कहाँसे मिली। अगर वे नागरिक जीवनमें बिलकुल नये आदमी होते और ऐसा बयान देते तो उसे क्षम्य समझा जा सकता था; परन्तु श्री लवडेकी स्थितिके भद्र पुरुषके लिए पहले तस्दीक किये बिना दावेसे बयान देना—और सो भी ऐसे बयान, जिनसे बहुत हानि हो सकती है—मिथ्यापवादसे कम नहीं है। कोई भी व्यक्ति जो भारतमें थोड़े समय भी रह चुका है, यह जानता है कि