वहाँ ऐसे कोई नियम नहीं हैं, जैसे श्री लवडेने बताये हैं; और अक्सर भारतके महान रेलमार्गोपर, पहला दर्जा हो या दूसरा, यूरोपीय और भारतीय साथ-साथ एक ही डिब्बे में सफर करते देखे जाते हैं। वतनी लोगोंके प्रश्नपर श्री लवडे के विचार कितने ही उग्र क्यों न हों, हमारा हमेशा यह खयाल रहा है कि वे उनके प्रामाणिक विचार हैं, और वे पहले तथ्योंका पता लगाये बिना किसी बयानके साथ अपना नाम नहीं जुड़ने देते; परन्तु जैसे इस मामले में वे भारतीय रेल-यात्राके बारेमें अपने बन्धु-सदस्योंके मनपर गलत छाप डालनेके साधन बने हैं, ठीक उसी तरह उन्होंने राहमें किसी पुलिसवालेकी चलती-चलाती बातचीतको प्रस्तावका आधार बनाकर सरकारके प्रति भी अन्याय किया है। परिषद और सरकार दोनोंके प्रति उनका कर्तव्य था कि वे पुलिस कमिश्नरके साथ पत्र-व्यवहार करके परिषदकी बैठक में प्रस्ताव लानेसे पहले अपनेको दी गई जानकारीकी पड़ताल कर लेते।
इंडियन ओपिनियन, १४-१-१९०४
८०. श्री बोर्कसे प्रार्थना
ट्रान्सवाल विधान परिषदमें प्रिटोरियाके माननीय सदस्यने सूचनापत्रपर एक प्रश्न रखा है। यह प्रश्न वे सर रिचर्ड सॉलोमनसे विधान परिषदके खुलनेपर उन नियमोंके बारेमें पूछेंगे जो भारतमें यूरोपीयों और भारतीय मुसाफिरोंको रेलोंमें जगह देनेके बारे में प्रचलित है। हम माननीय सदस्यको पहले ही सूचित कर देते हैं, कि मुसाफिर यूरोपीय हों या भारतीय, उनमें कोई भेद नहीं किया जाता, और किसी भी दर्जेमें सफर करनेवाले भारतीयोंको वही अधिकार है जो यूरोपीयोंको है। परन्तु कुछ रेलोंमें तीसरे दर्जेमें सफर करनेवाले भारतीयोंकी भीड़ बहुत होनेके कारण तीसरे दर्जे के कुछ डिब्बे केवल यूरोपीयों और यूरेशियाइयोंके लिए सुरक्षित रखे जाते हैं। अगर हमें माननीय सदस्यको एक सुझाव देनेकी इजाजत हो तो हम कहेंगे, वे इस प्रश्नमें कुछ और जोड़ दें, और सामान्य रूपमें पूछ लें कि, स्वयं भारतमें भारतीयोंका दर्जा क्या है। तब उन्हें बताया जायेगा कि वहाँ कानूनकी नजरमें वर्ग, रंग या धर्मका कोई अन्तर नहीं है, शाही विधान-परिषदमें भारतीय सदस्य यूरोपीयोंके साथ-साथ बैठते हैं, भारतके तमाम उच्च न्यायालयोंमें भारतीय न्यायाधीश हैं, नगर-निगमोंमें अधिकतर सदस्य भारतीय हैं, बम्बईके नगर-निगमके अध्यक्ष पिछले साल एक भारतीय थे, इस समय मद्रास उच्च न्यायालयके स्थानापन्न मुख्य न्यायाधीश एक भारतीय हैं और वहां सबको व्यवसाय और निवासकी पूरी स्वतंत्रता है।
इंडियन ओपिनियन, १४-१-१९०४