८३. ट्रान्सवालकी स्थिति[१]
[जोहानिसबर्ग]
जनवरी १८, १९०४
ट्रान्सवालमें भारतीयोंकी आज तककी स्थितिका प्रदर्शक वक्तव्य
जैसा कि नीचेके वक्तव्यसे स्पष्ट होगा, सरकारने एक असमर्थनीय तथा विरोधी रुख अख्तियार कर लिया है:
उपनिवेश-सचिव श्री डंकनने विधान परिषद में इस आशयका प्रस्ताव रखा कि जो लोग लड़ाईसे पहले बिना परवानोंके भी व्यापार कर रहे थे, उन सबके परवाने नये कर दिये जायें। सर जॉर्ज फेरारने संशोधन पेश किया कि ऐसे लोगोंको अस्थायी रूपसे परवाने दिये जायें और उनके दावोंकी जाँचके लिए एक आयोग नियुक्त किया जाये। लगता था कि इन परिस्थितियोंमें भारतीयोंके तमाम मौजूदा परवाने फिर अस्थायी रूपसे जारी कर दिये जायेंगे; किन्तु सरकारने संशोधनकी सीमा संकुचित करके परवाना देनेवाले अधिकारियोंको हिदायतें दी हैं कि वे पहलेके व्यापारके बारेमें प्रमाण लें और यदि उन्हें सन्तोष हो जाये तो अस्थायी परवाने जारी करें। अन्य लोगोंको बाजारोंके सिवा दूसरी जगहोंके लिए परवाने न दिये जायें। इसका अर्थ हुआ आयोगमें एक और आयोग! यदि नियुक्त होनेवाले आयोगको प्रमाण लेने हैं तो फिर गरीब व्यापारी राजस्व लेनेवालोंके सामने प्रमाण पेश करनेके खर्च में क्यों डाले जायें—खास करके जब उनके परवाने अस्थायी तौरपर ही जारी किये जानेवाले हैं? इसके सिवा, शान्तिकी घोषणाके बाद जब इन्हें परवाने दिये गये थे तब ये एशियाई पर्यवेक्षकोंके सामने प्रमाण देनेपर मजबूर किये ही जा चुके है। पर्यवेक्षकोंने उनकी बड़ी सख्तीसे जाँच की थी और दिलजमई कर ली थी कि वे वास्तविक शरणार्थी हैं और लड़ाईके पहले व्यापार कर रहे थे। इसके बाद ही उन्होंने सिफारिशें की थीं, जिनके बलपर परवाना-अधिकारियोंने परवाने जारी किये थे। वे सारे प्रमाण, जो भारतीयसमाजके विरोधके बावजूद सरकारी अधिकारियोंके आगे पेश किये गये थे, अब निःसत्व माने जायेंगे। उनके निर्णय निरर्थक हो जायेंगे और भारतीयोंको फिरसे परीक्षा देनी होगी; और यह परीक्षा भी पूरे तौरपर अनिर्णीत होगी। अंग्रेजी झंडेकी छायामें अधिकारोंकी ऐसी अनिश्चितता इसके पहले कभी नहीं देखी गई थी।
बात अभी बाकी है। लॉर्ड मिलनरने कहा है कि युद्धके बाद परवाने अस्थायी तौरपर दिये गये थे। ब्रिटिश भारतीयोंने इस वक्तव्यका खण्डन किया है। परवाने ज्यादातर पूरे वर्षके लिए बिना किसी शर्तके दिये गये थे—इस दावेकी पुष्टिमें सरकारके सामने बहुत ठोस प्रमाण पेश किया जा चुका है। ऐसे पाँच-छ: लोगोंके मामले सरकारको बताये गये जिनको पिछले सालके प्रारम्भमें ३१ दिसम्बरको समाप्त होनेवाले परवाने दिये गये थे। किन्तु उनपर कोई शर्त न लिखी रहने के कारण उन्हें उन्हीं अहातोंके पंच-साला परवाने दिये गये। एक आदमीको इसलिए परवाना दिया गया कि वह लड़ाईके पहले ट्रान्सवालकी किसी और जगहमें व्यापार करता था और युद्ध में वह किसी सिपाहीकी जान बचानेका निमित्त बना था। उसे इसपर बहुत अच्छा
- ↑ यह दादाभाई नौरोजीको भेजा गया था और उन्होंने इसकी एक नकल भारत-मन्त्रीको भेजी थी। यह १९-२-१९०४ के इंडियामें भी प्रकाशित किया गया था।