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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/१५२

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८७. एशियाई अनुमतिपत्रों-सम्बन्धी रिपोर्ट

लॉर्ड मिलनरके अनुरोधसे कप्तान हैमिल्टन फाउलने एक ज्ञापन तैयार किया है, जिसमें एशियाइयोंको दिये गये अनुमतिपत्रोंके आँकड़े बताये गये हैं। इस ज्ञापनमें विशुद्ध तथ्योंका स्पष्ट वर्णन और श्री लवडे तथा उनके मित्रोंको पूरा जवाब है। ये लोग गला फाड़-फाड़ कर चिल्ला रहे थे कि हजारों भारतीय लुकछिपकर उपनिवेशमें घुस आये हैं। और, परमश्रेष्ठ लॉर्ड मिलनरके प्रति पूरा आदर रखते हुए हम कहेंगे, यह ज्ञापन श्रीमानके खरीतेमें दिये गये इस वक्तव्यका पूरा खण्डन भी है कि बहुत-से गैर-शरणार्थी ब्रिटिश भारतीय उपनिवेशमें घुस आये हैं और उन्होंने परवाने हासिल कर लिये हैं। जैसा कि कप्तान फाउलका बयान है, यह सच है कि ५७९ भारतीय अनुमतिपत्रोंके बिना उपनिवेशमें रहनेके जुर्म में सीमाके पार भेजे गये हैं। इससे यह तो हरगिज साबित नहीं होता कि ये लोग जान-बूझकर घुस आये थे। पिछले वर्षके शुरूमें यह कहा गया था कि जब शान्तिकी घोषणा हो जायेगी और परवानोंके नियम ढीले कर दिये जायेंगे तब उपनिवेशमें प्रवेश करने के लिए अनुमतिपत्रोंकी जरूरत नहीं होगी। रेलोंमें कोई देखरेख थी नहीं, अत: भारतीय स्वाभाविक रूपसे उपनिवेशमें आ गये थे। अब वे निकाल दिये गये हैं। ये भारतीय ब्रिटिश प्रजाजन है और ऐसे लोग नहीं हैं जिनसे शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अर्थकी सीमामें समाजको कोई खतरा हो सकता हो; इस बातको देखते हुए बहुतोंको यह शंका होगी कि क्या यह कदम न्यायसंगत है। हमारी रायमें, ब्रिटिश भारतीयोंके आगमनपर पाबन्दी लगानेके लिए अध्यादेशका उपयोग गलत रूपमें किया जा रहा है। जब वह जारी किया गया था तब उसका स्पष्ट उद्देश्य ऐसे लोगोंको उपनिवेशमें आनेसे रोकना था जो राजनीतिक दृष्टिसे खतरनाक हो सकते थे—अवश्य ही भारतीयोंकी तरह सम्राटके सबसे अधिक राजभक्त माने हुए प्रजाजनोंको रोकना नहीं। उपनिवेशमें केवल ८,१२१ भारतीय हैं। इससे सिद्ध होता है कि उनके विरुद्ध अध्यादेशपर अमल कितनी कठोरतासे किया गया है। सर कनिंघम ग्रीन (तब, श्री ग्रीन) के कथनानुसार १८९९ में यहाँ वयस्क भारतीयोंकी आबादी १५,००० से ऊपर कूती गई थी। इसलिए, ७,००० शरणार्थियोंके बारेमें अभी और जवाबदेही करनी पड़ेगी। यह भी कहा जा सकता है कि भारतीय प्रवासियोंपर पाबन्दी लगानेकी प्रथा पुरानी नहीं है, बिलकुल नई है। पुरानी हुकूमतके कानून कुछ भी रहे हों, परन्तु ब्रिटिश भारतीयोंके प्रवेशपर कतई कोई पाबन्दी नहीं थी और न उनके पंजीकरणकी धारापर सख्तीसे अमल किया जाता था। फिर भी हम परमश्रेष्ठ गवर्नर महोदयको श्री चेम्बरलेनको यह आश्वासन देते हुए पाते हैं कि पुराने कानून पहलेकी तरह कठोरतासे लागू नहीं किये जा रहे है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २१-१-१९०४