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९३. आत्मत्याग—२

हम लोगोंमें से अनेकोंको अनुभव हुआ है कि एकेसे सार्वजनिक लाभ होता है। नेटालमें आजसे बीस बरस पहले भारतीयोंको इतना अधिक सताया जाने लगा था कि सरकारको विशेष आयोगकी नियुक्ति करनी पड़ी। इस आयोगने बड़ी जाँच-पड़ताल की और परिणाममें मत हमारे पक्षमें दिया। गोरोंमें अध्यवसाय और एकताका गुण पर्याप्त होने के कारण उपद्रव जारी रहा और भारतीयोंको सिर्फ बाड़ोंमें रखनेकी बार-बार माँग हुई। उस समय भारतीय जनतामें जितना चाहिए उतना एका नहीं था, इसलिए उपद्रव रुका नहीं, बल्कि उलटे बढ़ता गया और स्वराज्य मिलते ही भारतीयोंको अपमानित और हैरान करनेके कायदे बनाये जाने लगे। यद्यपि भारतीय देरसे जागे फिर भी उत्साह तथा लगनसे काम करने लगे जिससे जुल्मका बढ़ना रुक गया—नहीं तो आज सब बाड़ोंमें होते। दुर्भाग्यसे यह जोश-खरोश सिर्फ लगभग तीन ही बरस रहा, किन्तु इस अवधिमें बहुत लाभ हुआ और यद्यपि आज वह जोश-खरोश नहीं है फिर भी एकता बढ़ती जाती है और यह मजबूत हो जाये तो हमारी हालत सुधरे बिना नहीं रहेगी। इस हकीकतको सोचें तो आत्मत्यागका महत्त्व सहजमें समझा जा सकता है। हम लोगोंने स्वार्थका त्याग करना शुरू किया कि परमार्थ-बुद्धि खिलने लगी और उसका फल अच्छा हुआ। कुछ-न-कुछ त्याग किये बिना एका और मिलजुलकर काम नहीं हो सकता। संसारकी इमारत त्यागपर खड़ी है।

हम इस लेखकी ओर अपने ट्रान्सवालके भाइयोंका विशेष ध्यान खींचते है क्योंकि वहाँ स्थिति बहुत अव्यवस्थित और खेदजनक है। आजतक यह सोचकर कि सरकार जरूर न्याय करेगी हमने अदालत जानेका विचार नहीं किया। किन्तु यदि सरकार गोरी जनताके वशमें रहकर हमारे प्रति इन्साफ करने में अनमनी या अशक्त लगे तो सारी कौमका मिलकर इसपर विचार करना और योग्य कदम उठाना नितान्त आवश्यक है। ऐसा करने में समय या पैसा या बादमें दोनोंका त्याग करना पड़े तो हमें आशा है कि वे बेशक करेंगे। प्रसंग बहुत नाजुक है, और गया अवसर फिर हाथ नहीं आता, यह ध्यानमें रखकर हमारे ट्रान्सवालके भाइयोंको अपना रक्षण करनेकी भरपूर कोशिश करनी चाहिए, और हमें लगता है कि वे ऐसा करने में कमी नहीं करेंगे। हमारा दावा सही है। इसलिए यदि लगनसे आन्दोलन चलायें तो परिणाममें जय मिले बिना नहीं रहेगी। एक होने और समय तथा धनका त्याग करनेका यह मौका है। हमें अपना कर्तव्य करना ही चाहिए। बादमें जो ईश्वरकी इच्छा होगी वह होगा। बचपनमें हमने एक गाड़ीवानकी बात पढ़ी थी; वह याद रखने योग्य है। गाड़ीका पहिया कीचड़में धंस गया तो वह भगवान्की प्रार्थना करने लगा। उसपर भगवान्ने कहा कि इस तरह प्रार्थना करनेसे काम नहीं चलेगा। तू मेहनत कर तो बाद में भगवान् मदद करेगा। तब गाड़ीवानने मेहनत की और पहिया निकला। हम सब इसका तात्पर्य समझ सकते है, इसलिए इसका खुलासा करनेकी जरूरत नहीं है। हमसे जितनी बने उतनी कोशिश करें, यह हमारा कर्तव्य है—फल ईश्वरके हाथमें है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-१-१९०४

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