ब्रिटिश भारतीयोंकी स्वतंत्रतापर प्रतिबंध लगानेवाला कोई कानून पास करनेका हक नहीं है। और उन्होंने यह राय दी थी कि, दोनों सरकारें १८८६ के संशोधनके अनुसार १८८५ के कानून ३ से बँधी हुई हैं, क्योंकि उन दोनों कानूनोंके पास होनेमें ब्रिटिश सरकारकी खास रजामंदी थी। हमारा खयाल है कि इस दलीलकी तरफ न्यायाधीशोंका काफी ध्यान नहीं दिलाया गया। और उन्होंने मुकदमेमें अपना फैसला इस तरह दिया मानो कोई पंच-फैसला था ही नहीं। यद्यपि न्यायाधीश जॉरिसन भी, ब्रिटिश भारतीयोंके दुर्भाग्यसे, न्यायाधीश मॉरिसनके फैसलेसे सहमत हो गये, तथापि उनका तर्क पूरी तरह ब्रिटिश सरकारके किये हुए अर्थके पक्षमें था। संविधानमें असमानताके सम्बन्ध विद्वान न्यायाधीश कहते हैं:
इससे यह निष्कर्ष निकालना कि कुलियोंके खिलाफ सरकार जो भी कार्रवाई ठीक समझे कर सकती है, मेरी रायमें, ऐसा व्यापक अर्थ करना है, जिसका विधान-सभाका कभी इरादा नहीं हो सकता था। इस धारामें रंगदार लोगोंका मतलब उन रंगदार लोगोंसे है जो उस समय यहाँ रहते थे—अर्थात्, मतलब काफिरोंसे है। लोकसभा (फोक्सराट) ने जब कुलियोंके लिए अलग कानून बनाया तब उसको यही भावना मालूम होती थी कि कुली इसमें शामिल नहीं किये गये।
किन्तु इस समय ये फैसले ध्यान देने लायक हैं। इसलिए हम इन्हें अन्यत्र उद्धृत कर रहे हैं।
इंडियन ओपिनियन, ४-२-१९०४
९५. फिर ऑरेंज रिवर उपनिवेश
हम एक अन्य स्तम्भमें उस अध्यादेशका मसविदा प्रकाशित कर रहे हैं, जिसमें रंगदार लोगोंपर व्यक्ति-कर लगानेके सम्बन्धमें बनाये गये कानून एकत्र और संशोधित किये जा रहे हैं और जो १६ जनवरीके ऑरेंज रिवर उपनिवेशके असाधारण गज़टमें निकला है। उस उपनिवेशकी वर्तमान सरकारकी रंग-विरोधी प्रवृत्ति बिलकुल विलक्षण है। वहाँ बुरे-से-बुरे रूपकी गुलामी अमली तौरपर पुनरुज्जीवित की जा रही है और अध्यादेशके उक्त मसविदेसे दक्षिण अमेरिकाके इसी तरहके कानूनको याद आती है। हम पत्रोंमें पढ़ते हैं कि उस देशमें जो हब्शी जुर्माना नहीं दे सकते वे सेवाके लिए किसी भी गोरेके जो उनका जुर्माना अदा कर दे, हवाले किये जा सकते हैं और इस प्रकार, आड़े-टेढ़े ढंगसे, अमेरिकाके संविधानके अनुसार गैर-कानूनी गुलामी दिन-दहाड़े जारी रखी जाती है और कानून द्वारा मंजूर कर दी जाती है। उल्लिखित अध्यादेशके मसविदेकी धारा १३ इस प्रकार है:
इस अध्यादेशके अनुसार कर-संग्राहकके मांगनेपर कोई रंगदार व्यक्ति व्यक्ति-कर न चुका सके तो उस हालतमें कर-संग्राहक तुरन्त इसकी सूचना उस खेत या मकानके गोरे मालिक, पट्टेदार या कब्जेदारको (यदि कोई हो तो) देगा और, उसके बाद, यदि उक्त कर चुकाया नहीं जाता या उसकी अदायगीके लिए काफी जमानत नहीं दी जाती तो, जिलेका स्थानीय मजिस्ट्रेट या शान्ति-संरक्षक (जस्टिस ऑफ दि पीस), जो भी वहाँ हों,