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९६. ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय व्यापारी

परमश्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नरने विधान-परिषदके प्रस्तावके अनुसार जब सर्वश्री हनी, शेरिडन रूबी और चैमनेका एक आयोग नियुक्त कर दिया है। श्री चैमने उसके मन्त्री है। यह आयोग

उन एशियाइयोंके मामलोंका विचार करेगा, जो लड़ाई छिड़नेके समय या उससे ठीक पहले बिना परवानोंके पृथक बस्तियोंके बाहर ट्रान्सवालके शहरोंमें व्यापार कर रहे थे और जाँच करके यह रिपोर्ट देगा कि ऐसे व्यापारियोंको संख्या क्या है और पृथक बस्तियोंके बाहर व्यापार करनेको अनुमति दी जानेके कारण वे जिन निहित स्वार्थोंका दावा करते हैं वे दावे कैसे हैं और उनका क्या मूल्य है।

आयोगके सदस्योंके बारेमें हमें कुछ कहना नहीं है। मन्त्री श्री चैमने भारतीयोंकी नजरमें भारतीय अनुभव और निष्पक्ष भाव रखनेवाले सज्जन हैं। श्री हनी तटकर-निर्देशक और शेरिडन राजस्वके निरीक्षक हैं। यह मान लेना काफी निरापद है कि ये सज्जन बिना किसी पक्षपातके काम करेंगे। श्री रूबी एक योग्य बैरिस्टर है और निर्वाचक-सूचियोंके सुधारका अच्छा काम कर रहे है। उनकी कानूनी तालीमसे दूसरे सदस्योंको विषयकी सीमामें रहने और उसके सम्बन्धमें कोई कानूनी मुद्दे उठे तो उनका सामना करने में मदद मिलनी चाहिए। किन्तु आयोगकी उपयोगिताके सम्बन्धमें कुछ दिलचस्पी पैदा होती है, क्योंकि भारतीयोंने एक परीक्षात्मक मुकदमा छेड़ दिया है। अगर उसका फैसला उनके पक्षमें होता है, जैसा कि होना चाहिए, तब तो आयोगका परिश्रम व्यर्थ हो जायेगा। इसलिए यह जाहिर है कि मुकदमेका नतीजा निकलनेतक आयोगकी नियुक्ति स्थगित रखी जाती तो ज्यादा अच्छा होता। ट्रान्सवाल, खास तौरपर आजकल, बहुत खुशहाल नहीं है और यह दुःखकी बात है कि बहुत-सा धन व्यर्थकी छानबीनमें बरबाद कर दिया जायेगा। आयोगके विचारणीय विषय ऐसे है कि, "लड़ाई छिड़नेसे ठीक पहले" शब्दोंका अर्थ करनेमें श्री रूबीकी कानूनी योग्यता काफी खर्च होगी। उनकी मर्यादामें आनेवाला कौन समझा जायेगा? आयोगके सदस्य ऐसी तारीख कैसे मुकर्रर करेंगे जो, उनकी रायमें, लड़ाई छिड़नेके तुरन्त पहलेकी होगी? परन्तु उन विविध भेद-भावोंकी, जो अक्सर ईर्ष्या-द्वेषजन्य होते है और जाँचके दौरानमें जिनके सामने आनेकी सम्भावना है, इस समय चर्चा करना बेकार है। पासा फेंका जा चुका है और अब हम आयोगकी कार्रवाईकी बड़ी उत्सुकतासे प्रतीक्षा कर रहे हैं।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ४-२-१९०४