९७. आस्ट्रेलियाके ब्रिटिश भारतीय
हम अपने पाठकोंका ध्यान श्री चार्ल्स फ्रान्सिस सीवराइटके कार्यकी रिपोर्टकी ओर आकर्षित करते हैं। ये आस्ट्रेलियाके ब्रिटिश साम्राज्य-संघके यूरोपीय कमिश्नर हैं और रिपोर्ट बम्बईके एडवोकेट ऑफ इंडियामें प्रकाशित हुई है। हम मानते हैं कि श्री सीवराइट अच्छा काम कर रहे हैं और हम उनके शुभ व्रतमें पूरी सफलता चाहते हैं। श्री सीवराइटने ऐसा पक्ष ग्रहण किया है, इससे जाहिर होता है कि आस्ट्रेलियामें भी, जहाँ उस दिन नष्ट हुए जहाजके लोग अपनी चमड़ीके रंगके कारण उतरनेसे रोक दिये गये है, ऐसे यूरोपीय मौजूद हैं, जिन्हें रंगसम्बन्धी कानून बनानेपर और इस प्रश्नपर सर्वसाधारणका रवैया देखकर हृदयसे लज्जा होती है। हम दक्षिण आफ्रिकाके उपनिवेशियोंसे अपील करते हैं कि क्या वे समयके चिह्न नहीं पहचानेंगे और साम्राज्य-निष्ठोंकी हैसियतसे इस प्रश्नपर भारतमें रहनेवाले करोड़ों लोगोंकी भावनाओंका खयाल करना ठीक नहीं समझेंगे? अगर वे भारतवासियोंके दक्षिण आफ्रिकामें यात्रा करना या बसना पसन्द करनेपर अत्यन्त अपमानजनक पाबन्दियाँ लगाकर उनकी भावनाओंको आघात पहुंचाते रहेंगे, तो केवल समय आनेकी देर है कि, भारत और उपनिवेशोंके बीच स्थायी मनोमालिन्य हो जायेगा और इन उपनिवेशोंकी रायमें इस समय भारत कितना ही नगण्य दिखाई देता हो, परन्तु जल्दी ही ऐसा समय आयेगा जब उन्हें भूल स्वीकार करनी पड़ेगी। शायद तब भूल सुधारना संभव नहीं रह जायेगा। आदान-प्रदानकी नीति ही एकमात्र व्यावहारिक नीति है। उपनिवेशी तो संसारके अन्य सब लोगोंसे अधिक व्यावहारि बुद्धि रखनेवाले माने जाते हैं। अगर उसे वे इस प्रश्नमें लगायें तो उनकी समझमें आ जायेगा कि जो-कुछ वे लेते हैं उसके बदलेमें थोड़ा-सा भी दें तो यह बुद्धिमत्ता ही होगी।
श्री सीवराइटने एक घोषणापत्र तैयार किया है। उसे भी हम अन्यत्र छाप रहे हैं। उन्होंने चन्देके लिए अपील की है। यह एक नाजुक मामला है। हमारे विचारसे इस शुभ कार्यको पूरा नैतिक समर्थन मिलना चाहिये। परन्तु आस्ट्रेलियाकी समस्या वही होना जरूरी नहीं है जो दक्षिण आफ्रिकामें है; इसलिए धनका बँटवारा नहीं किया जा सकता। प्रत्येक समाजको अपना उद्धार आप करने देना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि सब अपने-अपने साधन जुटायें और हमारी रायमें कारगर सहयोग इसी तरह किया जा सकता है।
इंडियन ओपिनियन, ४-२-१९०४