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९९. श्रमके प्रश्नपर लॉर्ड हैरिस

डेली मेलसे लेकर अन्यत्र हम एक मुलाकातके समाचार छाप रहे हैं, जो उसके प्रतिनिधिने बम्बईके भूतपूर्व गर्वनर लॉर्ड हैरिससे की है। लॉर्ड महोदय आजकल जोहानिसबर्ग में हैं और संयुक्त स्वर्ण-क्षेत्र (कॉन्सॉलिडेटेड गोल्डफील्ड्स ) के अध्यक्ष हैं। उन्होंने मुलाकात करनेवालेको बाहरसे मजदूर लाने के बारेमें अपने विचार बताये हैं और उनका खयाल है कि इंग्लैंडमें उसका जो विरोध किया जा रहा है वह बहुत अनुचित है। उन्होंने अपने कयनके समर्थनमें यह तथ्य बताया है कि वेस्ट इंडीज और दूसरे देशों में अबसे पहले बाहरसे रंगदार गिरमिटिया मजदूर लाये गये हैं। लॉर्ड महोदयसे इसकी अपेक्षा कहीं अच्छे तर्ककी आशा की जाती थी, क्योंकि हमें निश्चय है, वे अपरिचित हो नहीं सकते कि वेस्ट इंडीज और ट्रान्सवालमें तथा दूसरे देशोंके श्रम-अध्यादेशों और उस श्रम-अध्यादेशके बीच बहुत बड़ा अंतर है जिसे, ट्रान्सवाल-सरकार चाहती है, ब्रिटिश सरकार बिना पसोपेश के मंजूर कर ले। सबको मालूम है कि वेस्ट इंडीज गोरे श्रमिकोंके लिए उपयुक्त नहीं है, क्योंकि वहाँकी आबोहवा बड़ी कष्टदायक है, जबकि ट्रान्सवालका जलवायु बिलकुल अच्छा है और यहाँ गोरे मजदूरोंको जैसा काम वे इंग्लैंडमें करनेके आदी है वैसा ही करने में कोई कठिनाई नहीं होगी। किसीने कभी यह नहीं कहा है कि ऐसे मजदूरोंके लिए यहाँका जलवायु उपयुक्त नहीं है। आपत्ति एकमात्र यह है कि गोरे मजदूर बहुत महँगे हैं। श्री मॉर्लेने यह बताकर आर्थिक दलीलको निपटा दिया है कि खानोंको थोड़े मुनाफेसे सन्तोष करना चाहिए और जो खाने गोरे श्रमिकों द्वारा बिलकुल चलाई ही नहीं जा सकतीं उनमेंसे सोना निकालने की उतावली करनेकी जरूरत नहीं है। रही बात दूसरे देशों और ट्रान्सवालके गिरमिटिया-काननोंमें अन्तरकी, सो वह अन्तर उतना ही है जितना स्वतन्त्रताके और गलामीके इकरारनामोंमें होता है। जहाँतक हमें मालम है, ब्रिटिश उपनिवेशवादके इतिहासमें मजदूरोंके लिए कहीं ऐसा कठोर, ऐसा व्यापक और ऐसा अन्यायपूर्ण गिरमिटिया कानून मुश्किलसे मिलेगा, जैसा ट्रान्सवालका श्रमिक आयात अध्यादेश (लेबर इम्पोर्टेशन आडिनेन्स) है। वेस्ट इंडीज और अन्यत्र जो गिरमिटिया मजदूर जाते हैं वे गुलाम बनकर नहीं जाते, बल्कि ज्यों ही उनका इकरारनामा पूरा हो जाता है, वे उस देशमें बसने और साधारण नागरिक अधिकार भोगनेके लिए स्वतंत्र हो जाते हैं। इसलिए हमारा नम्र निवेदन है कि लॉर्ड हैरिसका वेस्ट इंडीज़ और दूसरे देशोंके उदाहरण देना उचित नहीं है।

भारत-सरकारके रुखपर लॉर्ड महोदयकी टिप्पणियाँ और भी रोचक और शिक्षाप्रद हैं। लॉर्ड महोदय कहते हैं:

भारतीय दृष्टिकोणसे, मेरा खयाल है, भारत सरकारका रुख अब कुछ भी हो, शुरूमें उसने भूल की थी। व्यापारी और कुली बिलकुल अलग-अलग लोग हैं। भारतके लिए एक उत्तम बात होती अगर भारतसे ट्रान्सवालको आना-जाना होता रहता। दोनों देशोंके बीच निश्चय ही बहुत-सा व्यापार खड़ा हो जाता और कुली ट्रान्सवालको अपने परिश्रमका लाभ देकर, अपने रुपये लेकर—वह पूँजी लेकर, जिसकी भारतको असली जरूरत है—अपने गाँवोंको लौट जाते।