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लेडीस्मिथके परवाने


हमें यह कहनेके लिए क्षमा किया जाये कि यद्यपि कुली और व्यापारी अलग-अलग लोग हो सकते हैं, फिर भी इसका मतलब यह नहीं होता कि कुली हमेशा कुली ही बना रहे और उसे माल-असबाब जैसा समझा जाये। अगर उसे इस देशमें लाया ही जाता है तो उसे यहाँ बसने और ईमानदारीकी रोजी कमाने के अधिकारसे क्यों वंचित रखा जाये? और भारत-सरकार अपना रास्ता छोड़कर एक ऐसी सरकारके लिए क्यों गुंजाइश निकाले जो यहाँ रहनेवाली भारतीय आबादीके साथ न्यायका बरताव करनेका कुछ भी खयाल नहीं रखती? गिरमिटिया मजदूरोंको लाने के कारण भारतका व्यापार बहुत बढ़ जानेकी बात करना तो बहुत ठीक है; लेकिन कुछ हजार भारतीयोंके गुलाम बनकर ट्रान्सवालमें जानेसे भारतीय दरिद्रताको समस्या हल नहीं होगी और हमारा खयाल है कि भारत-सरकारने, सूझाई हुई शर्तोंपर और जो ब्रिटिश भारतीय पहलेसे इस उपनिवेशमें बसे हुए है उनकी हालतमें सुधार हुए बिना, भारतसे ट्रान्सवालमें गिरमिटिया मजदूर न आने देनेका फैसला ठीक ही किया है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ११-२-१९०४

१००. लेडीस्मिथके परवाने

लेडीस्मिथके टाउन क्लार्क और परवाना-अधिकारी श्री लाइन्सने अब ब्रिटिश भारतीय दूकानदारोंको यह टिप्पणी जोड़कर परवाने दिये हैं:

यह परवाना इसके मालिक द्वारा ली हुई ठीक इस जिम्मेदारीके अनुसार दिया गया है कि परवानेवाली दूकान शनिवारके सिवा किसी दिन शामको पाँच बजेके बाद व्यापारके लिए खुली नहीं रहेगी और परवानेवाली दुकान छुट्टीके दिनोंमें बन्द रखी जायेगी।

यह सिद्धान्त मान लेनेके बाद कि जल्दी दुकानें बन्द कर देनेके बारेमें भारतीय दूकानदारोंको श्री लाइन्सको लगाई शर्ते मंजूर कर लेनी चाहिए, हम उपर्युक्त टिप्पणीके खिलाफ बहुत-कुछ नहीं कह सकते। तथापि इस मर्यादाके अन्तर्गत, हम परवानोंपर लिखी जानेवाली टिप्पणीपर विरोध व्यक्त करने के लिए लाचार हैं, क्योंकि वह गैर-कानूनी और बेमौका है। कोई सत्ता धारण करना एक बात है, और जनताके सामने रोषप्रद ढंगसे उसका प्रदर्शन करना दूसरी बात है। यदि श्री लाइन्सने अपनी जीतसे सन्तोष कर लिया होता और परवानेदारोंके प्रति उसका प्रदर्शन न किया होता तो वह कम कारगर न होती, और सुन्दर भी दिखाई देती। यदि जिम्मेदारी जरा भी भंग होती तो वे अगले साल कठोर कार्रवाई कर सकते थे। अभी तो हमारा यही खयाल है कि उपर्युक्त टिप्पणीसे सारी सुन्दरता जाती रही। श्री लाइन्सको यह भी जान लेना चाहिए कि परवानोंपर टिप्पणी लिख देनेके बावजूद मान लीजिए, कोई, परवानेदार उसकी परवाह नहीं करता और शामके पाँच बजे के बाद भी अपना कारोबार जारी रखता है, तो वे (श्री लाइन्स) एक बार दिया हआ परवाना रद नहीं कर सकते। निषेधपर अमल करानेके लिए काननी तरकीब कोई नहीं है। यह तो उनके अपने और भारतीय दूकानदारोंके बीच केवल समझौता और करारकी बात है। इसलिए हमें अफसोस है कि श्री लाइन्सने परवानोंपर वह टिप्पणी दर्ज कर दी है। साथ ही, जो हो गया उसपर