रोने-चिल्लानेसे कोई लाभ नहीं और हमारे खयालसे जिम्मेदारीका कड़ाईसे पालन करना लेडीस्मिथके ब्रिटिश भारतीय दूकानदारोंका स्पष्ट कर्त्तव्य है।
इंडियन ओपिनियन, ११-२-१९०४
१०१. पत्र: डॉ० पोर्टरको
२१ से २४ कोट चेम्बर्स
फरवरी ११, १९०४
स्वास्थ्य-चिकित्सा अधिकारी
पो० ऑ० बॉक्स १०४९
प्रिय डॉ० पोर्टर,
मैं आपको भारतीय बस्तीकी भयंकर हालतके बारेमें लिखनेकी धृष्टता कर रहा हूँ। कमरोंमें वर्णनातीत भीड़भाड़ दिखाई पड़ती है। सफाई करनेवाले बहुत अनियमित रूपसे भेजे जाते है और बस्तीके अनेक निवासी मेरे दफ्तरमें आकर शिकायत कर गये है कि अब सफाईकी हालत पहलेसे भी बहुत बुरी है।
बस्तीमें काफिरोंकी भी बहुत बड़ी आबादी है, जिसका वस्तुतः कोई औचित्य नहीं है। मैंने जो-कुछ सुना है उससे मेरा विश्वास है कि बस्तीमें मृत्युसंख्या बहुत बढ़ गई है और मुझे लगता है कि आज जो हालत है वह यदि बनी रही तो, आज हो या कल, कोई संक्रामक बीमारी फैले बिना नहीं रह सकती।
मैं जानता हूँ, सफाई-सम्बन्धी सुधारोंमें आप बहुत बढ़े-चढ़े हैं। इसलिए मैं आपसे प्रार्थना करना चाहता हूँ कि मेहरबानी करके आप एक बार खुद वहाँ जायें और सफाईके समान ही बस्तीके घनेपनकी समस्या भी उचित रूपसे हल करा दें। यदि आपको मेरा सुझाव ठीक लगे और मैं कुछ काम आ सकूँ तो मुझे आपके साथ जानेमें खुशी होगी।
मैं और कहना चाहता हूँ कि आज जो हालत है उसके लिए बस्तीके निवासी किसी प्रकार जिम्मेदार नहीं है।
आपका सच्चा,
मो० क० गांधी
इंडियन ओपिनियन, ९-४-१९०४