पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/१६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१०२. पत्र: डॉ० पोर्टरको


२१ से २४ कोर्ट चेम्बर्स
फरवरी १५, १९०४


डॉ० सी० पोर्टर

स्वास्थ्य-चिकित्सा अधिकारी

जोहानिसबर्ग

प्रिय डॉ० पोर्टर,

आप पिछले शनिवारको भारतीय बस्ती देखने गये और उसकी ठीक-ठीक सफाईके काममें दिलचस्पी ले रहे हैं, इसके लिए मैं आपका बहुत ही आभारी हूँ। मैं वहाँकी स्थितिके बारेमें जितना अधिक विचार करता हूँ वह मुझे उतनी ही बुरी मालूम होती है। और मेरा खयाल है कि यदि नगर-परिषद असमर्थताका रवैया अपना लेती है तो वह अपने कर्तव्यसे च्युत होती है; और मैं यह भी जरूर आदरपूर्वक कहता है कि लोक-स्वास्थ्य समितिका यह कह तरह उचित नहीं हो सकता कि वहाँ न तो भीड़-भड़क्केको रोका जा सकता है और न गन्दगीको। मुझे विश्वास है कि इस मामले में बरबाद किया गया एक-एक पल विपत्तिको जोहानिसबर्गके नजदीक लाता है, और उसमें ब्रिटिश भारतीयोंका कोई भी दोष नहीं है। जोहानिसबर्गके सब स्थानोंमें से भारतीय बस्ती ही शहरके सारे काफिरोंको भरनेके लिए क्यों चुनी जाये, यह मेरी समझमें ही नहीं आता। जहाँ लोक स्वास्थ्य समितिकी सफाई-सम्बन्धी सुधारकी बड़ी-बड़ी योजनाएँ बेशक बहुत प्रशंसनीय और कदाचित् आवश्यक भी हैं वहाँ, मेरी नम्र रायमें, भारतीय बस्तीकी गन्दगी और अत्यधिक भीड़-भाड़के मौजूदा खतरेकेका सामना करनेके स्पष्ट कर्तव्यकी भी उपेक्षा नहीं होनी चाहिए। मैं महसूस करता हूँ कि इस समय कुछ सौ पौंड खर्च कर देनेसे शायद हजारों पौंडकी बचत होगी, क्योंकि यदि दुर्भाग्यवश बस्तीमें कोई छूतको बीमारी फैल गई तो लोगोंमें घबराहट पैदा हो जायेगी और इस समय जो बुराई बिलकुल रोकी जा सकती है उसके इलाजके लिए तब तो रुपया पानीकी तरह बहाया जायेगा।

मुझे आश्चर्य नहीं है कि आपके अमलेको बहुत काम करना पड़ता है, इसलिए वह बस्तीकी सफाईका पूरा काम करने में असमर्थ है; क्योंकि आपको जो चीज चाहिए और जो मिल नहीं सकती वह है हरएक मकानके लिए एक सफैया। जो काम सबपर छोड़ दिया जाता है, वह किसीका भी नहीं होता। आप बस्तीके प्रत्येक निवासीसे सफाईकी देखभाल करनेकी आशा नहीं रख सकते। जब्तीसे पहले हरएक बाड़ेका मालिक अपने बाड़ेकी ठीक सफाईके लिए जिम्मेदार माना जाता था और वह बहुत स्वाभाविक भी था। मैं स्वयं जानता हूँ कि इसके परिणामस्वरूप प्रत्येक बाड़ेके साथ एक सफैया लगा रहता था और जो उसकी बराबर देखभाल रखता था; और में नि:संकोच कह सकता है कि बाड़ोंकी जो हालत इस समय है उसके मुकाबिलेमें वे अच्छी और आदर्श अवस्थामें रखे जाते थे।

आप मुझसे उपाय सुझानेके लिए कहते हैं। मैंने तो इस मामलेको टाला था और अगर नगर-परिषद कोई उचित ढंग अपना ले तो मुझे सन्देह नहीं कि स्थितिमें तुरन्त सुधार हो सकता है। और उसके लिए नगर-परिषदको कुछ खर्च भी न करना पड़े, और शायद कुछ पौंडकी बचत भी हो जाये। बाड़ोंके मालिकोंको थोड़े अरसे के लिए—छ: महीने या तीन महीनेके