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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

लिए—पट्टे दे दिये जायें। पट्टोंमें ठीक-ठीक लिख दिया जाये कि हर बाड़ेमें या हर कमरेमें कितने आदमी रखे जायेंगे। पट्टेदार कीमत आँकनेवालों द्वारा आँकी गई कीमतका, मान लीजिए, ८ फीसदी चुकायें; और जिस बाड़ेका उन्हें पट्टा दिया गया हो, उसकी सफाईके लिए उन्हें सख्तीके साथ जिम्मेदार बनाया जाये।

तब सफाईके नियमोंपर कठोरतासे अमल कराया जा सकता है। एक या दो निरीक्षक बाड़ोंको रोज देख सकते है और नियम भंग करनेवाले लोगोंके साथ सख्तीसे पेश आ सकते हैं।

यदि यह विनम्र सुझाव मान लिया जाये तो आपको दो-तीन दिनमें बहुत सुधार दिखाई देगा और आप थोड़ी-सी कलम चलाकर गन्दगी और भीड़-भाड़का सफलतापूर्वक सामना कर सकते हैं। नगर परिषद भी व्यक्तियोंसे किराया वसूल करनेकी झंझटसे बच जायेगी।

अवश्य ही, मेरे सुझावके अनुसार नगर-परिषदको बस्तीसे काफिरोंको हटा लेना होगा। मैं स्वीकार करता हूँ कि भारतीयोंके साथ काफिरोंको मिला देने के बारेमें मेरी भावना बहुत ही प्रबल है। मेरे खयालसे यह भारतीय लोगोंके साथ बड़ा अन्याय है और मेरे देशवासियोंके सुप्रसिद्ध धीरजको भी बेजा तौरपर खपानेवाला है।

यद्यपि अस्वच्छ क्षेत्रमें शामिल किये गये दूसरे भागोंमें मैं स्वयं नहीं गया हूँ, फिर भी मुझे बड़ा अन्देशा है कि वहाँ भी वही हालत होगी और मैंने ऊपर जो सुझाव दिया है, वह दूसरे भागोंपर भी लागू होगा।

मुझे भरोसा है कि आप इस पत्रको उसी भावनासे अंगीकार करेंगे जिस भावनासे यह लिखा गया है; और मुझे आशा है कि मैंने अवसरको विकटताको देखते हुए आवश्यकतासे अधिक जोरदार भाषाका उपयोग नहीं किया है। कहनेकी जरूरत नहीं कि इस दिशामें मेरी सेवाएँ पूरी तरहसे आपके और लोक-स्वास्थ्य समितिके सुपुर्द हैं। और मुझे कोई शक नहीं कि सफाईके मामले में भारतीय समाज जो-कुछ कर सकता है वह कर दिखानेका अगर नगरपरिषद उसे उचित मौका भर दे दे तो, मेरे मनसे, बहुत भूल न होगी।

आप इस पत्रका जैसा चाहें उपयोग कर सकते हैं।

अन्तमें, मैं आशा करता हूँ कि समाजके सामने जो खतरा है उसका कोई उपाय तुरन्त खोज निकाला जायेगा।

आपका विश्वासपात्र,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-४-१९०४