१०५. पत्र: डॉ० पोर्टरको
२१ से २४, कोर्ट चेम्बर्स
फरवरी २०, १९०४
स्वास्थ्य-चिकित्सा अधिकारी
प्रिय डॉ० पोर्टर,
मैं आपके आजकी तारीखके पत्रके लिए आभारी हूँ।
मेरे जिस पत्रके कुछ हिस्सोंपर आपने आपत्ति की है, उसे लिखनेका मेरे लिए एक ही कारण था कि, सफाईके उद्देश्य-साधनमें मदद मिले और मेरे अपने देशवासियोंकी सेवा हो सके। मैंने जो-कुछ कहा है उसमें से कुछ भी मैं वापस नहीं लेता, क्योंकि अगर जरूरत हो तो मेरे प्रत्येक कथनकी पुष्टि की जा सकती है।
किन्तु मैं आपका यह खयाल दुरुस्त किये बिना नहीं रह सकता कि भारतीय लोग काफिरोंको किरायेदार रख रहे हैं। उन्हें उप-किरायेदार रखनेका तो अधिकार ही नहीं है।
मैं यही आशा रख सकता हूँ कि मौजूदा हालतें जल्दी ही खत्म हो जायेंगी।
आपका सच्चा,
मो० क० गांधी
इंडियन ओपिनियन, ९-४-१९०४
१०६. नगरपालिका सम्मेलन और भारतीय व्यापारी
पिछले सप्ताह जोहानिसबर्गमें ट्रान्सवालके नगरपालिका-सम्मेलनकी जो बैठक हुई उसमें बॉक्सबर्ग-परिषदके प्रतिनिधि श्री जॉर्ज कॉन्स्टेबलने नीचे लिखा प्रस्ताव पेश किया:
इस बातको ध्यानमें रखते हुए कि विधानपरिषदके सामने एक नया एशियाई कानून लाया जानेवाला है, और यह कि, यह प्रश्न स्थानीय शासन संस्थाओंके लिए इतने बड़े महत्त्वका है, ट्रान्सवालकी नगरपालिकाओंका यह सम्मेलन अपनी राय अंकित करता है कि यहाँके निवासियोंके लिए सबसे सन्तोषजनक नीति यह होगी कि तमाम एशियाइयोंको बाजारोंमें रख दिया जाये, और जो पिछली सरकार द्वारा पहले दिये हुए परवानोंके अनुसार बाहर व्यापार करता हो उसे वाजिब मुआवजा दिया जाये; और यह भी कि, तमाम स्थानीय अधिकारियोंको ऐसे उपनियम बनानेकी अनुमति दी जाये जो रंगदार लोगोंसे सम्बन्धित मामलोंको नियमित करने और बाजारों तथा निवास-स्थानों आदिके लिए स्थान मुकर्रर करनेके बारे में जरूरी हों।