१०९. विक्रेता-परवाना अधिनियम
डर्बनकी नगर-परिषदने फिर एक बार साबित कर दिया है कि व्यापारियोंके लिए विक्रेतापरवाना अधिनियम अत्याचारका कैसा भयंकर बेलन है। कार्रवाईसे मालूम होता है कि कोई श्री जे० एस० बुल्फसन पिछले तीन वर्षों से व्यापार कर रहे हैं। परन्तु इस साल परवाना-अधिकारीके जी में आया और उसने उनका परवाना नया करने से इनकार कर दिया। इसके कोई कारण नहीं बताये गये, और, इसलिए, पीड़ित व्यापारी श्री एस्क्यूकी सेवाएं प्राप्त करके अपीलके प्रक्रियामें से गुजरा है, जिसकी कानूनमें गुंजाइश है। किन्तु श्री एस्क्यू अन्धकारमें भटक रहे थे, क्योंकि उन्हें यह मालूम नहीं था कि किस बिनापर उनके मुवक्किलकी रोटी छीनी गई थी। उन्होंने सिर्फ अनुमान लगाया था कि उनके मुवक्किलका बहीखाता ठीक तरहसे नहीं रखा गया था, और अब वे निश्चित रूपसे जानना चाहते थे कि इनकारीका कारण यही था या नहीं। इसलिए महापौरने परवाना-अधिकारीकी रिपोर्ट मांगी, मगर श्री एस्क्यूको उसे देखनेकी इजाजत नहीं थी, क्योंकि वह "गुप्त" थी। श्री एस्क्यूने विरोध किया, परन्तु व्यर्थ। अन्तमें श्री बर्नके रूप में उन्हें एक ऐसे परिषद-सदस्य मिल गये जो चुपचाप बैठने और किसी मनुष्यको सुनवाईका मौका दिये बिना सजा देनेके निर्दय अन्यायमें शरीक होनेको तैयार नहीं थे। जब महापौरने विरोधमें यह कहा कि उक्त दस्तावेज प्रकट नहीं किया जा सकता तब श्री बनने धमकी दी कि यदि महापौर अपने एतराज पर अड़े रहेंगे तो वे भविष्यमें अपीलें सुननेका काम नहीं करेंगे। यह धमकी ऐसी थी, जिसकी महापौर महोदय उपेक्षा नहीं कर सकते थे और इसलिए उन्होंने यह कह कर बीचका मार्ग निकाल लिया कि मामलेपर समिति में विचार किया जायेगा। इसलिए श्री एस्क्यूने ठीक ही हस्तक्षेप किया और कहा कि यह तो मध्य युगमें लौट जानेकी बात हुई। हमें तो मालूम नहीं कि मध्य युगमें भी, सुनिश्चित कानूनी तरीके होते हुए, इस तरहकी शोकजनक हालत होने दी जाती थी। अवश्य ही, यदि किसी मनुष्यको अपील करनेका अधिकार है तो उसे उन कागजातको देखनेका भी हक होना चाहिए जो मिसलमें मौजद हों। श्री एस्क्यूने सोमनाथके जिस मुकदमेका[१] हवाला दिया उसका फैसला करते हुए न्यायाधीश मेसनने नगर-परिषदकी कुछ साल पहलेकी मनमानी कार्रवाईपर कुछ चुभते हए उदगार प्रकट किये थे। परिषदने अपीलकर्ताको मिसल देखनेकी इजाजत देनेसे इनकार कर दिया था और मामलेपर समितिमें, अर्थात् अपीलकर्ताकी पीठके पीछे, विचार किया था। किन्तु इस अवसर पर परिषदने समितिका आश्रय जरूर लिया और कुछ समयकी प्रसवपीड़ाके बाद इस प्रस्तावको जन्म दिया कि श्री एस्क्यू कागजात देख सकते हैं। उनमें टिप्पणी संक्षिप्त थी—"बही-खाता असन्तोषजनक, परवाना नहीं दिया गया।" फिर श्री एस्क्यूने यह साबित करनेको शहादत पेश की कि बहीखाता योग्य हिसाबनवीसने रखा था और, इसलिए, नगर-परिषदको अपना अधिकार काममें लाकर परवाना-अधिकारीको परवाना जारी करनेका आदेश देना चाहिए। परन्तु नगर-परिषद इतनी आसानीसे न्याय करनेको राजी नहीं की जा सकती थी। इसलिए उसने अपीलको खारिज कर दिया, परन्तु श्री एस्क्यूको सुझाया कि वे परवाना-अधिकारीको फिरसे अर्जी दें।
दक्षिण आफ्रिकाके प्रमख और आदर्श शहरकी नगर-परिषद इस प्रकार अपनेको जलील करे और जो मामले अपीली अदालतके रूपमें उसके सामने आयें उनपर निष्पक्ष विचार करनेकी
- ↑ देखिए खण्ड ३, पृष्ठ २।