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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

अपनी अयोग्यताका इकबाल करे, यह खेदजनक कलंककी बात है; परन्तु इसमें आश्चर्य जरा भी नहीं है। कसूर विधान-मण्डलका है। उसने नगर परिषदोंको अत्यन्त निरंकुश सत्ता दी है, और जब उसके दुरुपयोगपर कोई नियन्त्रण नहीं रहा, तब डर्बन जैसे सुव्यवस्थित स्थानकी नगरपरिषदसे भी, उसके उपयोगका लोभ संवरण नहीं हो सका। जो सदस्य अपीलें सुनने बैठते हैं उन्हें कानूनकी तालीम नहीं है। उनमें से कुछ प्रतिस्पर्धी व्यापारी हैं और जब उनके अपने स्वार्थ निहित हों तब उनसे निष्पक्ष निर्णय देनेकी आशा रखना उचित नहीं है। इसलिए जबतक विक्रेता-परवाना अधिनियम उपनिवेशकी कानूनकी पुस्तकको कलंकित करता रहेगा तबतक उपनिवेशके लोगोंको उन्हीं अशोभनीय कार्रवाइयोंके दुहराये जानेके लिए तैयार रहना होगा, जिनकी तरफ जनताका ध्यान दिलानेका कटु कर्तव्य हमें अदा करना पड़ा है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३-३-१९०४

११०. जोहानिसबर्गकी भारतीय बस्ती

अन्यत्र हम वह प्रतिवेदन छाप रहे है, जो अस्वच्छ क्षेत्र-अधिग्रहण अध्यादेश (इनसैनिटरी एरिया एक्सप्रोप्रिएशन ऑडिनेन्स) के मातहत बेदखल भारतीयोंको बसानेके नये स्थानके सम्बन्धमें लोक-स्वास्थ्य समितिने दिया है। प्रतिवेदनसे प्रकट होता है कि जोहानिसबर्गकी नगर-परिषदकी लोक-स्वास्थ्य समितिने अपना विचार बदल लिया है। यह कुतूहलजनक बात है कि कैसे सरकार और सार्वजनिक संस्थाएँ अब भी समय-समयपर एशियाई-विरोधी नीति बदलती जाती हैं। पूर्व निर्धारित सिद्धान्तोंसे हटने के लिए बाहरका जरा-सा दबाव भी, भले वह कितना ही स्वार्थपूर्ण क्यों न हो, काफी प्रलोभन बन जाता है। बहुत दिन नहीं हुए, हमने अपने पाठकोंको सूचित किया था कि नगर परिषदकी लोक-स्वास्थ्य समितिने एशियाई बाजारके लिए वर्तमान काफिर-बस्तीके स्थानकी सिफारिश की है। भारतीयोंने इसका विरोध किया। विरोधके अनेक आधारोंमें से एक यह था कि वह बाजार वर्तमान बस्तीसे बहुत दूर होगा। परन्तु समितिको एक और अर्जी दी गई। उस अर्जी में परिषदके सुझावको नापसन्द किया गया था, क्योंकि अर्जदारोंकी रायमें वह स्थान उपर्युक्त बस्तियोंके बहुत नजदीक था। अर्जी पर १,३०० व्यक्तियोंके हस्ताक्षर थे, जिनमें से बहुतसे ब्रिक्स्टन, मेफेयर और फोर्ड्सबर्ग के निवासी बताये जाते हैं। भारतीयोंका विरोध बेशक बेकार था, परन्तु लोक-स्वास्थ्य समिति इन १,३०० अर्जदारोंके विरोधकी अवहेलना नहीं कर सकती थी। इसलिए वह कुछ महीने पहले प्रकट किये अपने ही मतसे मुकर गई है और यह सुझाव लेकर सामने आई है कि जिस स्थानकी पिछली सरकारने कभी भारतीय और चीनी बस्तीके लिए तजवीज की थी, उसे एशियाई बाजार के लिए ले लिया जाये; और समिति दलील देती है कि,

जिस भूमिका इस बाजारके स्थानके लिए उपयोग करनेकी अब तजवीज की गई है, वह वही है जो इस कामके लिए कई वर्षोंसे सुरक्षित कर रखी गई है। इसलिए इस कामके लिए इस स्थानके उपयोगके विरुद्ध आपत्तियाँ उतनी प्रबल नहीं हैं, जितनी शहरसे उतने ही फासलेके अन्दरके किसी अन्य स्थानके खिलाफ उठाई जा सकती हैं।