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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

से कुछने ईटोंकी इमारतें भी बना ली है और यदि उन्हें उनके स्थानोंसे हटाया गया तो यह क्रूरता होगी। अब समय आ गया है कि सरकार ट्रान्सवालके रंगदार लोगोंको निवासकालकी निश्चितता और उनके दर्जे के बारेमें आश्वासन प्रदान करे। जब यह बस्ती बसाई गई, तब वहाँ जंगल-मात्र था। अब अगर वह फूलती-फलती जगह बन गई है तो उसका कारण वहाँ रहनेवाले लोगोंकी मेहनत है। सरकारका कर्तव्य है कि उनके परिश्रम और लगनकी कद्र करे। हम देखते हैं कि इस बस्तीके बाडोंका किराया ७ शिलिंग ६ पेंससे बढ़ाकर १ पौंड माहवार कर दिया गया है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३-३-१९०४

११२. प्रवासी-प्रतिबन्धक प्रतिवेदन

अन्यत्र हम उस दिलचस्प, विस्तत और योग्यतापूर्ण प्रतिवेदनके मुख्य मुद्दे दे रहे हैं जो श्री स्मिथने[१] तैयार किया है और माननीय उपनिवेश-सचिवको दिया गया है।

विभिन्न मुद्दोंकी जाँच करनेसे पहले हम श्री स्मिथका ध्यान एक ऐसी बातकी ओर खींचना चाहते हैं, जो हमें प्रतिवेदनका एक मात्र दोष मालूम होती है; अन्यथा वह प्रतिवेदन उपनिवेशमें प्रवासपर प्रतिबन्ध लगानेके वर्षभरके कामका एक ऐसा सार है जिसपर कोई आपत्ति नहीं की जा सकती। श्री स्मिथकी लेखन-शैली जोरदार है, परन्तु हमें आदरपूर्वक कहना होगा कि किसी सरकारी रिपोर्टमें नाटकका या अखबारका ढंग अपनाना शोभा नहीं देता। जाँचके समय होनेवाली देरके सम्बन्धमें मुसाफिरोंकी शिकायतोंका जिक्र करते हुए वे कहते हैं:

साफ मौसममें, लंगर डालनेके स्थानपर सामानको पिटारी लिये घंटेभर नौकाठेलेपर खड़े रहनेवाले व्यक्तिके लिए वस्तुस्थितिका महत्त्व नहीं होता। सम्बन्धित अधिकारी काम निपटाकर खुद किनारेपर आ जानेको उत्सुक होगा, यह बात उसे मालूम नहीं होती। वह किसीसे (कदाचित् किसी लौटे हुए उपनिवेशीसे) विभागकी निन्दा सुनता है और आसानीसे उसके स्वरमें-स्वर मिला देता है। फिर, कड़वी भावनाओंसे भरा हुआ वह विभागको त्रुटियोंपर आलोचना लिखने और अखबारोंमें भेजनके लिए, और भावी यात्रियोंकी दशा सुधारनेके हेतु अव्यावहारिक सुझाव तैयार करने में अपनी परोपकार-वृत्तिका उपयोग करनेके लिए अपने होटलको दौड़ पड़ता है।

और लीजिए

मैं पहले ही बता चुका हूँ कि ऐसे यात्रियोंसे किसी राहतकी आशा रखना बेकार है जो 'सारे दाँव-पेंच जानते हैं।'

प्रतिवेदनके बीच-बीच में ऐसे सजीव अंश आते हैं जिनके पढ़ने में बेशक मजा आता है, मगर हमारी रायमें सरकारी प्रतिवेदनको जैसा होना चाहिए वैसे तथ्यपूर्ण कागजातमें ऐसी सामग्रीकी गुंजाइश नहीं है। इसके अतिरिक्त, जो शैली उन्होंने अपनाई है उससे श्री स्मिथकी चिड़चिड़ाहट जाहिर होती है। वैसे वे आसानीसे विचलित नहीं होते और जिन लोगोंसे उनके दफ्तरका

  1. प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिकारी श्री हेरी स्मिथ।