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जोहानिसबर्गका एशियाई "बाजार"

रखनेकी सब आशाएँ छोड़ देनी होंगी, और जिस बातका बॉक्सबर्गके व्यापारियोंने इतने उत्साहपूर्वक समर्थन किया है उसकी तुलनामें भारतीय व्यापारियोंकी उपस्थिति छोटी-सी बुराई रह जायेगी। अगर ये सज्जन समझते हैं कि सिद्धान्तका त्याग कर देनेके बाद वे कोई ऐसी चीज़ प्राप्त कर सकते हैं जिसका आग्रह सफलतापूर्वक केवल उस परम आवश्यकताके आधारपर किया जा सकता है जिसके लिए जातीय संकरताको रोकना जरूरी है, तो हमारा खयाल है कि इसका अंजाम निराशा-मात्र ही होनेवाला है। यह करदाताओंके प्रति अन्याय होगा कि उनसे उन भारतीय व्यापारियोंको मुआवजा देनेके लिए कहा जाये जिन्हें मंगोल समाजमें व्यापार करने के अधिकारसे वंचित रखा जायेगा। यह घोषणा की जा चुकी है कि ट्रान्सवालके लोगोंकी मर्जी अपनी समृद्धिका आधार एशियाई मजदूरोंको बनाने की है। यदि ऐसा हो तो रंगदार लोगोंकी स्पर्धामें गोरे व्यापारियोंको जो हानि होगी वह कोई खास महत्वको बात नहीं होगी।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १०-३-१९०४

११५. जोहानिसबर्गका एशियाई "बाजार"

जोहानिसबर्गको बेदखल कराई गई बस्तीके ब्रिटिश भारतीय निवासियोंके साथ हमारी पूरी सहानुभूति है। उनकी हालत बड़ी ही दर्दनाक है। पिछले सितम्बरसे इस क्षेत्रके अनेकानेक निवासी अपनी आजीविकाके एकमात्र साधनसे वंचित कर दिये गये हैं। बेदखलीके बदलेमें उनके दावोंका अनुमान लगाते समय ऊँचे किरायोंका कोई खयाल नहीं रखा गया, जिन्हें पानेके वे अभ्यस्त थे। इसलिए पंचोंने जितने मुआवजोंके फैसले दिये हैं वे यद्यपि नगर-परिषदके अन्तिम प्रस्तावोंसे बहुत-कुछ ऊँचे है, फिर भी भारतीयोंके लिए बहुत कम संतोषकी वस्तु है; क्योंकि उन्हें जो रकमें मिली हैं उनपर इतना ब्याज मिलना असंभव है कि वे बिलकुल आरामसे गुजारा कर सकें। उन सबको अधिगृहीत क्षेत्रके अन्दर ही घिरा रहना होगा, और नगर-परिषदकी दयापर जीना पड़ेगा; क्योंकि कानूनके अनुसार उनके लिए किसी स्थायी जगहकी व्यवस्था नहीं की गई है। जमीनमें वे अपना रुपया लगा नहीं सकते, क्योंकि ट्रान्सवालमें उन्हें स्थायी सम्पत्तिके मालिक बननेका हक हासिल नहीं है। प्राप्त समाचारोंके अनुसार, इस बस्तीमें सफाईकी हालत आजकल जितनी खराब है, उतनी पहले कभी नहीं थी। अतिरिक्त काफिर आबादी भी इसी बस्तीमें रखी जा रही है। नतीजा यह है कि वहाँ अवर्णनीय घिचपिच हो गई है। जब बाड़े मालिकोंके नियंत्रणमें थे तब उन्हें ठीक हालतमें रखनेकी जिम्मेदारी उनपर मानी जाती थी और तब यह स्थान अवश्य ही रहने लायक था। प्रत्येक मालिक अपने बाड़े के लिए एक भंगी रखता था और यह देखता था कि बेजा भीड़ न हो। लेकिन अब तो बस्तीकी सफाई किसीका भी काम नहीं रही। नगर-परिषदसे सारी जगहकी देखभाल करनेकी आशा रखी जाती है, परन्तु ठीक प्रबन्ध और ठीक तरहके अमलेके अभावमें वह बुरी तरह असफल हुई है। हमें मालूम है कि डॉ० पोर्टर जो-कुछ कर सकते हैं, करनेके लिए उत्सुक हैं; परन्तु प्रत्येक बाड़ेपर एक भंगी रखनेके लिए उनको धन प्राप्त नहीं है। उन्होंने इतना ही किया है और यही वे कर भी