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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

सकते थे, कि निरीक्षकोंकी संख्या बढ़ा दी गई है। परन्तु इतना करना काफी नहीं है। अगर [अधिग्रहणके पूर्व][१] बस्तीकी स्थिति ऐसी होती जैसी हमने बताई है, तो ब्रिटिश भारतीयोंकी आदतों और सफाईकी अवहेलनापर सब तरफसे शोर [मच गया होता[२]]। पहली तान मेजर ओ'मियाराने छेड़ी थी, और जिसे अब अस्वच्छ क्षेत्र कहा जाता है, जिसमें यह बस्ती शामिल है, उसकी निन्दा की थी। डॉ० पोर्टरने उसी तानको पकड़ा और बस्तीका चित्र कालेसे-काले रंगमें पेश किया। मेजर ओ मियारा और डॉ० पोर्टर दोनोंका कहना था कि इस इलाकेके—और खास तौरपर बस्तीके—अस्तित्वसे नगरका स्वास्थ्य सदा संकटापन्न रहता है; और उन्होंने सलाह दी कि सारी बस्तीका सफाया कर देने में एक क्षण भी खोया न जाये। फिर भी बस्ती वहीं बनी है—सिर्फ वह पहलेसे बहुत बदतर हो गई है और इससे इनकार न तो लायक डॉक्टर महोदय कर सकते हैं और न नगर-परिषद। तब, "संकटापन्न" का अर्थ क्या हो सकता था, इसका अनुमान प्रत्येक पाठक स्वयं लगा सकता है। इसके अलावा जोहानिसबर्गके अखबारोंमें छपे समाचारोंसे प्रकट होता है कि नये स्थानका बन्दोबस्त और सुधार पूर्ववत ही दूरकी बातें हैं। लोक-स्वास्थ्य समितिके प्रस्तावपर ब्रिक्स्टन बर्गके दूसरे भागोंके निवासियोंने रोष प्रकट किया है। नगर-परिषदसे एक शिष्टमण्डल मिला है और उसके सामने एक अर्जी भी पेश की गई है। इसलिए लोक-स्वास्थ्य समितिका ताजा प्रस्ताव हरगिज अन्तिम नहीं, इसमें कोई सन्देह नहीं है। यह बात नहीं कि इसका बड़ा महत्त्व है, क्योंकि यदि हम गलत न समझे हों तो, ब्रिटिश भारतीय ऐसे स्थानपर जानेसे साफ इनकार कर देंगे, जो व्यापार के लिए बिलकुल निकम्मा हो। उसपर १८९९ में जो आपत्तियाँ[३] की गई थीं वे आज भी उतनी ही ठीक है। परन्तु शिष्टमण्डलसे ऐसी शिक्षा मिलती है जिसे समझ लेना अच्छा है। स्वास्थ्य-समितिकी सलाह है कि मौजूदा काफिर बस्तीका उपयोग भारतीयोंको बसानेके लिए किया जाये। ब्रिक्स्टनके महानुभावोंने इस प्रस्तावका विरोध किया था और उन्हें सफलता मिली थी। अब वे दूसरी सिफारिशपर फिर ऐतराज कर रहे हैं और हमें मालूम हुआ है कि नगर-परिषदने इस उद्देश्यसे कि प्रस्तावित स्थानका वैयक्तिक रूपसे निरीक्षण कराया जाये, लोक-स्वास्थ्य समितिका प्रस्ताव स्वीकार करने के बजाय उसपर विचार स्थगित कर दिया है। इसलिए यदि लोक-स्वास्थ्य समितिको सिफारिश ताकपर रख दी जाये तो हमें जरा भी आश्चर्य नहीं होगा। इस स्थितिमें ब्रिक्स्टन और आसपासके इलाकेके निवासियोंको अपनी आपत्तिपर आग्रह भर रखना है; बस वह मान ली जायेगी। इस बीच गरीब भारतीयोंको धीरजके साथ प्रतीक्षा ही करनी होगी। प्रार्थियोंने जो दलीलें दी हैं वे [ब्रिटिश भारतीयोंके प्रति यूरोपीयोंके वर्तमान रुखके][४] बिलकुल अनुरूप हैं। हम सरसरी तौरपर [यह ध्यान रखें][५] कि श्री ब्राउन नामके एक पादरीने प्रार्थियोंके प्रवक्ताका काम किया था। इन लोगोंका कहना है कि, "हमारी स्त्रियों और हमारे बच्चोंके लिए इस जिले में रहना असम्भव और खतरनाक होगा।" यह जानना मनोरंजक होगा कि ये सज्जन इतने साल जिलेमें कैसे रह सके, क्योकि याद रखना चाहिए कि काफिर बस्ती और भारतीय बस्ती जहाँ इस वक्त हैं वहीं उन्हें १० सालसे अधिक हो गये हैं, और पड़ोसमें यूरोपीय बिना किसी खतरेके रह सके है और वहाँ रहना उन्हें असम्भव नहीं मालूम हुआ; क्योंकि काफिरोंको पड़ोसमें रखनेका सवाल अब पहली दफा नहीं उठा है। प्रार्थी यह भी कहते हैं:

  1. कोष्ठकोंके शब्द हमारे हैं; मूलमें यहाँके शब्द कट गये है।
  2. कोष्ठकोंके शब्द हमारे हैं; मूलमें यहाँके शब्द कट गये है।
  3. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ६८ और आगे।
  4. कोष्ठकोंके शब्द हमारे हैं; मूलमें यहाँके शब्द कट गये है।
  5. कोष्ठकोंके शब्द हमारे हैं; मूलमें यहाँके शब्द कट गये है।