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फिर पैदल-पटरियाँ

यद्यपि इस प्रकार एशियाइयोंके लिए स्थान मिल जायेगा, फिर भी (यूरोपीय) समाजका एक बहुत बड़ा वर्ग बेघरबार हो जायेगा, क्योंकि नगरसे और रोजन्दार मजदूरोंके स्थानसे थोड़े फासलेके भीतर मुनासिब कीमतपर और जमीन उपलब्ध नहीं है।

यह तो सचमुच हँसीकी बात है! उन (यूरोपीयों) को जहाँ वे है वहाँसे हटानेके बारेमें तो कोई प्रश्न ही नहीं उठाया गया। सच तो यह है कि, उन्हें अपनी हालत बेहतर बनाने और अपने-अपने घरबार बनानेके लिए हर तरहकी सुविधाएँ दी गई हैं। जो लोग द्वेषसे इतने अन्धे हो गये हैं कि न्याय और अन्यायमें बिलकुल भेद नहीं कर सकते, उनसे बहस करना बेकार है। उनका सुझाव है कि भारतीयोंको पहाड़ीके दक्षिणमें किसी ऐसे स्थानपर भेज दिया जाये, जहाँ नगरसे उनका सब सम्बन्ध कट जाये और रहे तो मुश्किलके साथ। जब उन्हें इस ऐतराजका सामना करना पड़ता है कि पहाड़ीके दक्षिणके स्थान सब खानोंके इलाके में होनेके कारण सुरक्षित है, तब वे कहते हैं कि चूंकि सरकारको खानोंके इलाकेका उतना हिस्सा ले लेनेका अधिकार है, जो सड़कें बनाने और ढेर लगाने वगैरहके लिए जरूरी हो, और चूंकि नगर-परिषदने नगरका कचरा जमा करनेके लिए उसका कुछ भाग पहले ही ले लिया है, इसलिए वह जिसे नगरका जिन्दा कचरा समझती है उसे भी वहाँ जमा कर सकती है।

उपनिवेश-सचिव इन सज्जनोंके जिनके प्रतिनिधि श्री ब्राउन हैं, और भारतीयोंके बीचमें जिन्हें मौजूदा बस्तीके अधिकसे-अधिक निकट निवास स्थान पानेका कानूनी हक है, आखिरी पंच है। मनुष्य होने के नाते भारतीयोंका अधिकार है, कि उनकी वर्तमान असमंजसकी स्थिति समाप्त की जाये और उन्हें ऐसी स्थितिमें रख दिया जाये कि वे अपना गुजारा कर सकें।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १७-३-१९०४

११६. फिर पैदल-पटरियाँ

जबसे ट्रान्सवालपर गोरोंका कब्जा हुआ है तभीसे इस देशके एशियाई-विरोधी कानूनोंके बारेमें सरकारसे बराबर आवेदन-निवेदन किये जाते रहे हैं। इन कानूनोंमें पुराना नगर-नियम भी है, जो रंगदार लोगोंको अगल-बगलके पैदल रास्तोंका इस्तेमाल करनेसे रोकता है। गत वर्षके ब्रिटिश भारतीय संघने लेफ्टिनेंट गवर्नरका ध्यान इस नियमकी ओर आकर्षित किया था और परमश्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नर महोदयने कहा था कि वे एशियाई-विरोधी कानूनोंको बेतरतीब निपटाना नहीं चाहते, बल्कि सारे प्रश्नपर एक साथ विचार किया जायेगा। इसी बीच, उन्होंने उनसे मिलनेवाले शिष्टमण्डलको विश्वास दिलाया कि पुलिस ब्रिटिश भारतीयोंको नहीं सतायेगी। परन्तु ट्रान्सवालसे खबर मिली है कि पुलिस कमिश्नरने पैदल रास्तों-सम्बन्धी उपनियम लागू करनेकी हिदायतें जारी कर दी है। अबतककी नीति इस तरह अचानक त्यागनेका कारण यह है: कहा जाता है कि एक काफिरने कुछ बदमाशी की। मामला श्री वान डर बर्गके सामने आया और उन्होंने उस (काफिर) को बरी कर दिया। दिलचस्पी रखनेवाले कुछ लोगोंने सोचा कि इस मामले में ठीक-ठीक न्याय नहीं किया गया है। अखबारोंको बहुत ही आवेशयुक्त भाषामें लिखे हुए पत्र भेजे गये। लीडरने अपने स्तम्भ खोल दिये और वतनी-विरोधी कठोर नीतिकी वकालत करके आन्दोलनको प्रोत्साहित किया। इसका जो परिणाम हुआ वह हम देख रहे है, और यदि वतनी लोगोंके विरुद्ध कोई नियम लागू किये जाते हैं तो भारतीयों सहित